Book Title: Saptanaya Vivaran Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अज्ञातकर्तृक सप्तनयविवरण सं. विजयशीलचन्द्रसूरि 'नय' ए जैन दर्शननो पारिभाषिक शब्द छे. अनेक आयामो के अंशो के धर्मो धरावता पदार्थना कोई एक आयाम, अंश के धर्मनो बोध करावनार वचन ते नय. वधु व्यवहारु के सहेली रीते कहेवुं होय तो एम कही शकाय पदार्थने कोई एक ज दृष्टिकोणथी जोवा समजवानी प्रक्रिया ते नयवाद. बीजा दृष्टिकोणनो इन्कार न करे, परंतु तेनो स्वीकार पण न करे, अने पोताना दृष्टिकोणने यथार्थ माने तेनुं नाम नय. जैन दर्शने आवा मुख्य सात नय वर्णव्या छे, जेनां नामो क्रमश: १. नैगमनय, २. संग्रहनय, ३. व्यवहारनय, ४. ऋजुसूत्रनय, ५. शब्दनय, ६ एवंभूतनय, ७. समभिरूढनय छे. नय एटले दृष्टि, अने ते दृष्टिना भेदे जुदां जुदां दर्शनो रचायां छे, तेम जैन दर्शन माने छे. 'नयभेदे दर्शनभेद' ए आनो अर्थ छे, एम कही शकाय. ए रीते तमाम नयोनो एटले के दर्शनोनो समन्वित समूह ते जैन दर्शन एम पण मानी शकाय केमके जैन दर्शननो मुख्य सिद्धांत स्याद्वाद सिद्धान्त छे. स्याद्वाद एटले अनेकान्तवाद कोई पण एक ज नयनेदृष्टिकोणने ज सत्य मानवो अने बीजा बधा नयोनो- दृष्टिबिन्दुओनो इन्कार के निषेध करवो-ए छे एकान्तवाद अर्थात् एकान्तवाद एटले संकुचित के सीमित दर्शन. जैन दृष्टिए स्वीकारेलो अनेकान्तवाद आवी सीमामां बंधातो नथी. ते तो समग्र नयोने पोतामां समावे छे. आ नयोनुं स्वरूप अनेक ग्रंथोमां वर्णवायुं छे. छतां अध्ययन करता मुनिराजो के विद्यार्थीओ, क्यारेक पोताना तो कदीक अन्यना बोध खातर पोतानी शैलीमां आ पदार्थनुं वर्णन लखता रह्या छे. अत्रे प्रस्तुत थती लघु रचना ए आवो ज एक प्रयास लागे छे प्रतिपादन अने पूर्वापर संबंधनी दृष्टिए घणी शिथिलता जणाती होवाथी आ विवरण कोई विद्यार्थी मुनिए पोताना अभ्यास काळमां कर्तुं होय तो ते शक्य छे. तो अक्षरना मरोड तेमज नयस्वरूपनी चर्चानुं स्वरूप जोतां, आ लखाण उपाध्याय श्रीयशोविजयजीना हाथनुं के पछी तेमना प्रिय विद्यार्थी मुनि हेत (के हित ) विजयजीनुं होवानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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