Book Title: Sanskrit Swayam Shikshak
Author(s): Shripad Damodar Satvalekar
Publisher: Rajpal and Sons

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Page 6
________________ पुस्तक प्रारम्भ करने से पहले इसे अवश्य पढ़ें इस पुस्तक का नाम 'संस्कृत स्वयं-शिक्षक' है और जो अर्थ इस नाम से विदित होता है वही इसका कार्य है। किसी पंडित की सहायता के बिना हिन्दी जानने वाला व्यक्ति इस पुस्तक के पढ़ने से संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। जो देवनागरी अक्षर नहीं जानते, उनको उचित है कि पहले देवनागरी पढ़कर फिर पुस्तक को पढ़ें। देवनागरी अक्षरों को जाने बिना संस्कृत जानना कठिन है। बहुत से लोग यह समझते हैं कि संस्कृत भाषा बहुत कठिन है, अनेक वर्ष प्रयत्न करने से ही उसका ज्ञान हो सकता है। परन्तु वास्तव में विचार किया जाए तो यह भ्रम-मात्र है। संस्कृत भाषा नियमबद्ध तथा स्वभावसिद्ध होने के कारण सब वर्तमान भाषाओं से सुगम है। मैं यह कह सकता हूँ कि अंग्रेजी भाषा संस्कृत भाषा से दस गुना कठिन है। मैंने वर्षों के अनुभव से यह जाना है कि संस्कृत भाषा अत्यंत सुगम रीति से पढ़ाई जा सकती है और व्यावहारिक वार्तालाप तथा रामायण-महाभारतादि पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए जितना संस्कृत का ज्ञान चाहिए, उतना प्रतिदिन घंटा-आधा-घंटा अभ्यास करने से एक वर्ष की अवधि में अच्छी प्रकार प्राप्त हो सकता है, यह मेरी कोरी कल्पना नहीं, परंतु अनुभव की हुई बात है। इसी कारण संस्कृत-जिज्ञासु सर्वसाधारण जनता के सम्मुख उसी अनुभव से प्राप्त अपनी विशिष्ट पद्धति को इस पुस्तक द्वारा रखना चाहता हूँ। हिन्दी के कई वाक्य इस पुस्तक में भाषा की दृष्टि से कुछ विरुद्ध पाए जाएँगे, परन्तु वे उस प्रकार इसलिए लिखे गए हैं कि वे संस्कृत वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के क्रम के अनुकूल हों। किसी-किसी स्थान पर संस्कृत के शब्दों का प्रयोग भी उसके नियमों के अनुसार नहीं लिखा है तथा शब्दों की संधि कहीं भी नहीं की गई है। यह सब इसलिए किया गया है कि पाठकों को भी सुभीता हो और उनका संस्कृत में प्रवेश सुगमतापूर्वक हो सके। पाठक यह भी देखेंगे कि जो भाषा की शैली की न्यूनता पहले पाठों में है, वह आगे के पाठों में नहीं है। भाषा-शैली की कुछ न्यूनता सुगमता के लिए जान-बूझकर रखी गई है, इसलिए पाठक उसकी ओर ध्यान न देकर अपना अभ्यास जारी रखें, ताकि संस्कृत-मंदिर में उनका प्रवेश भली-भाँति हो सके। पाठकों को उचित है कि वे न्यून-से-न्यून प्रतिदिन एक घंटा इस पुस्तक का अध्ययन किया करें और जो-जो शब्द आएँ उनका प्रयोग बिना किसी संकोच के करने का यत्न करें। इससे उनकी उन्नति होती रहेगी। जिस रीति का अवलम्बन इस पुस्तक में किया गया है, वह न केवल सुगम है, परन्तु स्वाभाविक भी है, और इस कारण इस रीति से अल्प काल में और थोड़े-से परिश्रम से बहुत लाभ होगा।

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