Book Title: Sanskrit Jain Nitya Path Sangraha
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 9
________________ • श्रीजिनसहस्रनामस्तोत्रम् न्धासुरमईनात् । अर्द्धन्ते नारयो यस्मादर्धनारीश्वरोस्युत ॥ ॥ शिवः शिवपदाध्यासाद् दुरितारिहरोहरः।शंकर कृतज्ञ लोके संभवस्त्वं भवन्मुखे॥९॥वृषभोसि जगज्ज्येष्ठः गुरुगुरु गुणोदयैः। नामेयो नाभिसंभूतेरिक्ष्वाकुकुलनन्दनः ॥१०॥ त्वमेक-पुरुषस्कन्धस्त्वं द्वेलोकस्य लोचने। त्वं त्रिधाबुधसन्मार्गस्त्रिज्ञस्त्रिज्ञानधारकः ॥११॥ चतुःशरणमांगल्यमूर्तिस्त्वं चतुरः सुधीः। पञ्चब्रह्ममयो देवः पावनस्त्वं पुनीहि माम् ॥१२॥ "स्वर्गावतारिणे तुभ्यं सद्योजातात्मने नमः । जन्माभिषेक

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