Book Title: Sanskrit Jain Nitya Path Sangraha
Author(s): Pannalal Baklival
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 8
________________ - -- - -- - - श्रीजिनसंहस्रनामस्तोत्रम् शत्रुहणं देवमामनन्ति मनीषिणः । त्वामानमत्सुरेण्मौलिभामालाभ्यर्चितक्रमम् ॥३॥ ध्यानदुर्घणनिभिन्नघनघातिमहातरुः। अनन्तभवसंतानजयोप्यासीरनन्तजित् ॥ ४ ॥ त्रैलोक्यनिर्जयाव्यातदुर्दमतिदुर्जयम्। मृत्युराज विजित्यासी बन्ममृत्युञ्जयो भवान् ॥५॥विधूताशेषसंसारो बन्धुनों भव्यबान्धवः । त्रिपुरारिस्त्वमीशोसि जन्ममृत्युजरान्तकृत् ॥ ६ ॥ त्रिकालविजयाशेषतत्स्वभेदात् त्रिधोच्छिदम्। केवलाख्यं दध: चक्षुत्रिनेत्रोसि त्वमीशितां ॥७॥ त्वामन्धकान्तकं प्राहुर्मोहा

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