Book Title: Sankheshwar Mahatirh
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 8
________________ ॥ अहम् ॥ Leavessed । श्रीसकलशिष्टशिरोमणि-परमोपकारि शान्तरसाऽपारपारावार-जिननयचयचतुर। योगीन्द्र-गुरु-गुरुश्रीवृद्धिचन्द्रमुनिमहात्मनां ....... स्तुतिरूपं श्लोकनवकम् । .. - 9OOD येनेयं पाविता पुरी पोद्धृता येन ये वयम् । संसाराऽसारपङ्कात् तं वृद्धिचन्द्रं गुरुं स्तुमः॥ (२) किं सार्वः किं सुधर्मा किमुत मुनिपतिः कम्बूकण्ठश्च जम्बूः १, किन्नु श्रीस्थूलभद्रः किमु जिननयविद् वादिवेतालशान्तिः । किं वाऽयं सिद्धसेनः किमखिलगुणवान् हेमचन्द्रो मुनीन्द्रः १, नाना नाना न नाना श्रमणगणगुरु-वृद्धिचन्द्रोऽस्ति मूत्तौ ॥ (३) यः शान्तमूर्तिस्ततकीर्तिवीथिर्गुणाकरो जैननयप्रचारी । जितेन्द्रियो लोकहितापतन्द्रो जीयात् स योगी गुरुटद्धिचन्द्रः॥ जिनागमापारसमुद्रसोमो निसर्गभक्त्यानतसार्वभौमः । मुनिप्रकाण्डं कृतमोसमुद्रो जीयात् स योगी गुरुदृद्धिचन्द्रः॥

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