Book Title: Samraicchakaha Part-1
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Mangal Parekhno Khancho Jain Sangh - Shahpur - Ahmedabad

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Page 13
________________ ॥ १२ ॥ पृष्ठ १२६ १४५ १५८ १६२ १७८ १९६ १९९ २१० २२१ २३६ २८६ २९० २९१ Jain Education International पंक्ति १५ १ ६ ६ १ ३ ३ ५ ५ १४ ३ १२ ६ अशुद्ध विकलिताश्च एय० भम० हारज्जिय० एत्य ओ वीहेइ नरयवत्तं प्राविण स्तस्यै अवती ० मालमाल ० कयखम्भ शुद्ध विकल्पिताच ण एय० भव हा - रञ्जिव एत्थ तओ बीइ नयरवत्तं प्राणि० तस्यै अवतीर्णः माल कणयसम्म पृष्ठ ३१३ ३१५ ३४४ ३७१ ३८१ ४२३ ४४३ ४५८ ४६३ ४६६ ४६६ ४७२ ५४८ ५४८ For Private & Personal Use Only पंक्ति १३ 5 १३ ૨ १ ८ १२ १४ ९ ९ १३ ૨ १० १४ अशुद्ध प्रेक्षित्वा कय शृणातु पढिस्सुय विहाराया० हूतोऽमिति पमाता परित्यजैत ० किमत भूतम० ० मण्लानीव पचोणि ० कृदृष्टप्त० नित० शुद्ध प्रेक्ष्य कथं शृणोतु डिस्सूर्य विहसिया ० हूतोऽहमिति प्रभाता परित्यजैव० किमनेन भूत० मण्डलानीव परवोणि ०कृष्टदृप्त० कुत्रचिच्च नितः वह ॥ १२ ॥ www.jainelibrary.org.

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