Book Title: Samraicchakaha Part-1
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Mangal Parekhno Khancho Jain Sangh - Shahpur - Ahmedabad

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Page 16
________________ भूमिया समराइच्च कहा RECALCIRCIE ॥३॥ ॥३॥ वोच्छं तप्पडि युद्धं भवियजणाणन्दयारिणिं परमं । संखेवो महत्थं चरिअहं तं निसामेह ॥ तत्थ य 'तिविहं कहावत्थु' ति पुव्यायरियपवाओ । तं जहा-दि, दिव्यमाणुसं, माणुसं च । तत्थ दिव्वं नाम जत्थ केवलमेव देवचरिअं वणिज्जाइ । दिव्यमाणुसं पुण जत्थ दोण्हं पि दिव्यमाणुसाणं । माणुसं तु जत्थ केवलं माणुसचरियं ति । एत्थ सामनओ चत्तारि कहाओ हवन्ति । तं जहा-अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा, संकिण्णकहा य । तत्थ अत्थकहा नाम, जा अत्थोवायणपडिबद्धा, असि-मसि-कसि-वाणिज-सिप्पसंगया, विचित्तधाउवायाइपमुहमहोवायसंपउत्ता, साम-भेय-उपप्पयाण-दण्डाइपयत्थविरइआ सा अत्थकह ति भण्णइ । जा उण कामोवायाण विसया, वित्त-वपु-व्यय-कला-दविखण्णपरिगया, अणुरायपुलइअपडिवत्तिजोअसारा, दुईबावार-रमियभावाणुवत्तणाइपयत्थसंगया सा कामकह त्ति भण्णइ । जा उण धम्मोवायाणगोयरा, खमा-मद्दव-ऽजव अत्र पुनरधिकारस्तावन श्रोतव्यैः प्रस्तुतप्रबन्धे । सर्वज्ञभाषितानि श्रोतव्यानीति भणितगिदम् ।। वक्ष्ये तत्प्रतिबद्धां भव्यजनानन्दकारिणीं परमाम् । संक्षेपतो महार्थी चरितकथां तां निशाम्थत ।। तत्र च 'त्रिविध कथावस्तु' इति पूर्वाचार्यप्रबादः । तद्यथा-दिव्यम् , दिव्यमानुषम् , ग नुवं च । सन्त्र दिव्यं नाम यत्र केवलमेव देवचरितं वर्ण्यते । दिव्यम नुपं पुनः स्त्र द्वयोरपि दिव्यमानुषयोः (चरितम्) । मानुषं तु रत्र केबल मानुषचरितमिति । अत्र सामान्यतः चतस्रः कथा भवन्ति । तद्यथा-अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा, संकीर्णकथा च । तत्र अर्थकथा नाम था अर्थोपादानप्रतिबद्धा, असि-मपी-कृषि-वाणिज्य-शिल्पसंगता, विचित्रधातुवादादिप्रमुखमहोपायसंप्रयुक्ता, साम-भेदो-पप्रदान-पण्डादिपदार्थविरचिता सा 'अर्थकथा' इति भण्यते । या पुनः कामोपादानविपया, वित्त-वपु-र्वयः-कला-दाक्षिण्यपरिगता, अनुरागपुलकितप्रतिपत्तियोगसारा, दूतीव्यापाररतभावानुवर्तनादिपदार्थसंगता सा 'कामकथा' इति भण्यते । या पुनर्धर्मोपादानगोचरा, क्षमा-मार्दवा-ऽऽर्जव-मुक्ति-तपः-संयम--सत्य N CERGREGAR Jain Education U-220 For Private & Personal Use Only elibrary.org

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