Book Title: Samraicchakaha Part-1
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Mangal Parekhno Khancho Jain Sangh - Shahpur - Ahmedabad
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समराइच्चकहा
॥५॥
२
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बद्धाए, इह परभवे य दुक्खसंबड्डिया ए कामकहाए अणुसज्जन्ति । जे उण मणगं सुन्दरयरा, सावेक्खा उभयलोएम, कुसला ववहारनयमणं, परमत्थओ सारविनागरहिया, खुद्दभोएस अवहुमाणिणो, अवियण्हा उदारभोगाणं, ते किंचि सत्तिया मज्झिमपुरिसा चैव आसयविसेसओ सुगइ - दुग्गइवत्तिणीए, जीव-लोगस भावविन्भमाए, सयलरसनीसन्दसंगयाए, विविह भावपसूइनिबन्धणाए संकिण्णकहाए अणुसज्जन्ति । जे उण जाइ-जरा-मरणजणियवेरग्गा, जम्मन्तरम्मि वि कुसल भावियमई, 'निव्विण्णा कामभोगाण, मुकपाया पावलेवेण, विश्नायपरमपय सरुवा, आसन्ना सिद्धिसंपत्तीए, ते सत्तिया उत्तिमपुरिसा सग्ग-निव्वाणसमारुहणवत्तिणीए, बुहजण पसं सज्जिए, सयलकहासुन्दराए, महापुरिस सेवियाए धम्मकहाए चैव अणुसज्जन्ति ॥
ओ अहं पिइयाणि दिव्य - माणुसरत्थुरायं धम्मक चेव कित्तइस्लामि । भणियं च अकयपरोवयारनिरएहिं, उवलद्धपरमपयविडम्बनमात्र प्रतिबद्धायाम्, इह परभवे च दुःखसंवर्धिकायां कामकथायाम् अनुपजन्ति । ये पुनर्मनाक सुन्दरतराः, सापेक्षा उभयलोhy कुशला व्यवहारनयमतेन परमार्थतः सारविज्ञानरहिताः, क्षुद्रभोगेषु अबहुमानिनः, अवितृष्णा उदारभोगानाम्, ते किञ्चित् साविक मध्यम पुरुपश्चैिव आशयविशेषतः सुगति-दुर्गतिवर्तिन्याम् जीवलोकस्वभावविभ्रमायाम्, सकलरसनिन्दुसंगतायाम्, विविधभावप्रसूतिनिबन्धनायां संकीर्णकथायाम् - अनुयजन्ति । ये पुनर्जाति-जरा-मरणजातवैराग्याः, जन्मान्तरेऽपि कुशलभावितमतयः, निर्विण्णाः कामभोगेभ्यः, मुक्तप्रायाः पापलेपेन, विज्ञातपरमपदस्वरूपाः आसन्नाः सिद्धिसंप्राप्त्याः ते साविका उत्तमपुरुष: स्वर्ग-निर्वाणसमारोहणवर्तिन्याम्, बहुजन प्रशंसनीयायाम्, सकलकथा सुन्दरायाम्, महापुषसेवितायां धर्मकथायामेव अनुषजन्ति ॥
ततोsहमपि इदानीं किय- मानुषवस्तुगतां धर्मकथामेव कीर्त्तयिष्यामि । भणितं च अकृतपरोपकारनिरतैः, उपलब्धपरमपदमार्गैः, सम१ निव्विण्णकामभोगा क
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भूमिया
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