Book Title: Sammadi Sambhavo Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 2
________________ 'सम्मदि-संभवो' प्रस्तुत महाकाव्य भगवान महावीर स्वामी व श्रमण परम्परा के महान तपस्वी आचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज का महाकाव्यात्मक जीवन चरित्र है । उत्तर प्रदेश के एटा जिले के फफोतू गाँव में माघ शुक्ला सप्तमी सन् 1938 को श्रेष्ठी प्यारेलाल व श्रीमति जयमाला जैन के ग्रहांगण में जन्में ओमप्रकाश ने आचार्य विमलसागरजी से कार्तिक शुक्ला द्वादशी सन् 1962 में सम्मेदशिखर में मुनिदीक्षा ली। दूसरे चातुर्मास के मध्य अपने गुरु के गुरु आचार्य महावीर कीर्तिजी की शरण स्वीकार कर ज्ञानार्जुन के साथ कठोर तपसाधना प्रारम्भ की। आचार्य महावीर कीर्तिजी ने अपने गुरु आचार्य आदिसागर (अकलींकर) से प्राप्त पट्टाचार्य पद समाधिभरण के तीन दिन पूर्व ही माघ कृष्णा तीज सन् 1972 को मेहसाबा में मुनि सन्मतिसागर जी को प्रदान किया। जीवन के उत्तरार्ध में अन्न व रसों का त्याग कर उन्होंने कठोर तपस्या की । जीवन के अन्तिम दस वर्ष 48 घंटे में 1 केवल एक बार मट्ठा - जल लेकर गुजारे। दस हजार से अधिक निर्जल उपवास किए। 200 से अधिक दीक्षाएँ दीं, 1200 से अधिक व्रती बनाए । अनेक उपाधियों के धारक तथा अनेक पुस्तकों के लेखक आचार्यश्री का समाधिमरण 24 दिसम्बर 2010 को कोल्हापुर जिले के कुंजवन (ऊदगाँव) में हुआ। उन्होंने अपना उतराधिकारी आचार्य सुनीलसागरजी को बनाया ।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 280