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डॉ. के. आर. चन्द्र
SAMBODHI
४. 'महाप.' के पद्य नं. ४ का पाठ
बाहिरऽन्भंतरं उवहिं, सरीरादि सभोयणं ।
मणसा वय कायेणं, सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥ 'मूलाचार' के पद्य नं. ४० का पाठ
बज्झन्भंतरमुवहिं, सरीराइं च सभोयणं ।
मणसा वचि कायेण, सव्वं तिविहेण वोसरे ॥ इन दोनों ग्रंथों के पद्यों का वर्ण और मात्राओं की दृष्टि से विश्लेषण इस प्रकार होगा'महाप.' में वर्ण ९+८ और ८+९ हैं, मात्राएँ १४+१२ और १२+१४ हैं।
'मूलाचार' में वर्ण ८+९ और ८+९ हैं और मात्राएँ १२+१४ एवं ११+१४ हैं । स्पष्ट है कि यह गाथाछन्द नहीं है बल्कि अनुष्टुप् छन्द है।
छन्द की दृष्टि से समीक्षा
'महाप.' के पद्य के प्रथम पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल.गु.ल. हैं और वर्ण नं. ६,७,८ की मात्राएँ गु., ल., ल., हैं । इस प्रकार दोनों ही तरह से अनुष्टुप् छन्द गलत ठहरता है। इसके द्वितीय पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल.,गु.,ल. हैं जो अनुष्टुप् छन्द की दृष्टि से सही है। इसके तीसरे पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल., गु., गु. हैं जो छन्द की दृष्टि से सही है। इसके चौथे पाद के वर्ण नं. ६,७,८ की मात्राएँ ल., गु., ल. हैं जो छन्द की दृष्टि से सही है । अर्थात् इसका पहला पाद छन्द की दृष्टि से त्रुटियुक्त जान पड़ता है। ___ इसी दृष्टि से 'मूलाचार' के प्रथम पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल., ल., ल. हैं जो छन्द की दृष्टि से गलत है। द्वितीय पाद के वर्ण नं. ६,७,८ की मात्राएँ ल., गु., ल. हैं जो सही है । तृतीय पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल., गु., गु. हैं जो सही है। तृतीय पाद के वर्ण नं. ५,६,७ की मात्राएँ ल., गु., गु. हैं जो सही है। चतुर्थ पाद के वर्ण नं. ६,७,८ की मात्राएँ ल., गु., ल. हैं जो सही है। अर्थात् इसका भी पहला पाद छन्द की दृष्टि से गलत ठहरता है। _ 'महाप.' के पद्य का प्रथम पाद यदि निम्न प्रकार से सुधारा जाय तो छन्द की दृष्टि से सही बन जाता है।
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