Book Title: Sambhavnath Kalash
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ 54 अनुसंधान-२७ प्रत्येके हरि साथें आवी मंदर भूधर जावेंजी अभियोगिक सुर तिहां हरि हुकमें क्षीरसमुद्र जल ल्यावैजी ॥८॥ व्यंतरना बत्रीसें सुरपति निज निज नगरो मझारजी पडह निनाद सुर तेडाया आया हरख अपारजी एक लाख ने अडवीस सहसा सामानिक सुर मेहनाजी पांच लाख ने द्वादश सहसा आतम रक्षक जेहनाजी ॥९॥ सात अनीक में तीन परखदा अग्रमहिषी च्यार च्यारजी अभियोगिक सुर कोडिगमें तिहां प्रत्येके परीवारजी इणि परें व्यंतरना सह नायक कनकाचल परें आवेंजी तीरथ जल ने सरसव मृत्तिका कुसुम कलश अणावेंजी ॥१०॥ ढाल : ३ देशी ललनानी (पूरण कलश शुचि उदकनी धारा जिनवर अंगे नामे रे) देती जोतीसीना दोय इंद्र, शशी रवि आसन चलियां ताम रे सिंहनादें सवि सुर तेडाया, आवे मन अभिराम रे ॥१॥ जवनव वाहन नवनव भूषण, नवनव वेष बनावें रे अष्ट सहस सामानिक बेहूना, ते पणि साथें आवे रे ॥२!! बत्रीस सहसा आतमरक्षक, इंद्राणी च्यार च्यार रे सात अनीक में तीन परखदा, आवें हरख अपार रे ॥३॥ अभियोगिक सुर पणि वली एहना, आवें कोडाकोडी रे केई निज भक्ते केई आचारे, प्रिया मित्र होडाहोडी रे ||४|| वलिय प्रकीर्णक विबुधा विविध, भक्ति करण जिनराज रे कंचनगिरि पर आवें सघला, जन्म महोच्छव काज रे ॥५॥ ढाल - ४ (नमो रे नमो श्री सेज गिरिवर (देशी) जनममहोच्छ्व स्नात्र करेवा वैमानिक दश इंदा रे, आसन चलित ने अवधि प्रयुंजे, जाणे जनम जिणंदा रे ॥१६ ज०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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