Book Title: Sambhavnath Kalash
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ 56 अनुसंधान-२७ इम कही दें परिवारने, अवस्वापिनी नींद प्रतिबिंब तिहां थापीने, चाल्या मेरु गिरिंद ॥२९ नं० ॥ पंच रूपें प्रभुनें ग्रही, आवें पांडुकवन्न तिहां चोसठि सुरपति मिल्या, हरख्या भवि मन ॥३० नं० ॥ दक्षिण दिशि सिंहासने, शकु लीइं रे उत्संग इम कोडि सठि लाख कलश लैं, स्त्रात्र करें हरिरंग ॥३१ नं०।। इणि परें जनम महोच्छव करी, करें समकित शुद्ध अनुभव रस आस्वादता, सवि मघवा विबुद्ध ॥३२ नं०।। तदनंतर शक्रेन्द्रजी लेई प्रभूने उल्हास अंगूठे अमृत ठवी, मेलें पो(मा)ताने पास ॥३३ नं०|| स्वापिनी निद्रा अपहरी, करें रतननी वृष्टि बत्रीस कोडि सुवर्णनी, प्रभु पुण्य गरिष्ट ॥३४ नं० ॥ नंदीसरे उत्सव करी, सुर गवा निज ठाण प्रभु गुण गण गंगा जलें, करता पवित्र अपाण ॥३५ नं० ॥ इम जे भवि जिनराजना, करें पूजा सनाथ सकल कुशल संपत्ति लहें, करें कर्म प्रमाथ ॥३६ नं० ॥ श्रीसंभवनो कलस ओ भणतां रिद्धिवृद्धि ज्ञान महोदय पद लहें, नव निधि अड सिद्धि ॥३७ नं०॥ इति श्री संभवनाथ प्रभूनो कलश संपूर्ण -x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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