Book Title: Sambhavnath Kalash
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 अनुसंधान-२७ श्री संभवनाथ कलश (सं.) डो. रसीला कडीआ प्रस्तुत कृतिनी नकल ला.द.भा. विद्यामन्दिर, अमदावादनी त्रूटक प्रत परथी करी छे. श्रीलक्ष्मणभाई भोजके आ कृतिने उकेलवामां तथा सम्पादन करतां शुं शुं जोवू तेनुं मार्गदर्शन हमेशनी पेठे पूलं पाड्युं छे ते बदल तेमनी तथा संस्थानी हुं ऋणी छु. २ पत्रो, ३७ कडीओ अने पांच ढाळोमां रचायेल आ 'संभवनाथ कलश'नी प्रति तेनी श्रेष्ठ स्थितिमा मळी आवी छे. अद्यापि पर्यंत आपणने श्रीऋषभदेव, श्रीपार्श्वनाथ, श्रीशान्तिनाथ तथा सर्वे जिणंदानो कळश प्राप्त थाय छे. स्त्रात्रपूजामां पांच के सात कुसुमांजलि मूकाय छे तेमां पण ए अनुक्रमे श्रीशान्ति जिणंदा श्रीआदिजिणंद श्रीनेमिजिणंदा श्रीपार्श्वजिणंदा श्रीवीरजिणंदा, श्रीचउवीस जिणंदा अने श्रीसर्व जिणंदाना नामे मूकाय छे. श्रीरूपविजयजीनी स्लावपूजामां श्रीआदि जिणंदा पछी श्रीअजित जिणंदा अने वीर जिणंदा पछी श्रीसीमंधर जिणंदा अने बादमां चोवीस जिणंदानी कुसुमांजलि छे. आ कळश संदर्भ में विविध पूजासंग्रहमांना अनुक्रमे पं. वीरविजयजी, श्री देवपालजी (देपाल कवि), श्री देवचन्द्रजी, श्रीरूपविजयजी तथा श्रीज्ञानविमलना कळशो तपास्या. भाषानी प्रांजलताने कारणे आजे आपणे सौ पं. श्रीवीरविजयजीना स्नात्रथी खूब ज परिचित छीओ. आ कृतिमां पण उपरना अन्य कळशोनी पेठे संवत आपवामां आवी नथी. पण लेखनरीति उपरथी १९मो शतक जणावी शकाय तेम लागे छे. रचनारीतिमा प्रारंभनो भाग श्रीदेवपालकृत स्नात्रपूजामां आवता श्री वच्छ भंडारी (भणे वच्छभंडारी अम मन, वसियो श्रीअरिहंतोजी)ना पार्श्वनाथ कलशना प्रारंभना भाग साथे साम्य धरावे छे. आ प्रारंभ आ प्रकारे छे : "श्रीसौराष्ट्र देश मध्ये, श्रीमंगलपुरमंडणो, दुरितविहंडणो, अनाथनाथ अशरणशरण त्रिभुवन जनमनरंजणो, त्रेवीसमो तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ तेह तणो कळश भणीशुं." कोई एक ज समये कळश कहेवानी आ प्रचलित रीति Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 51 होई शके अथवा कोई एक कविनी रचनारीतिनो अन्य कवि परनो प्रभाव होई शके. घणीवार देशीओ पण समयनिर्धारणमां मददरूप बने छे. श्री देवचन्द्रजीनी स्नात्रपूजामांना सर्वे जिणंदाना कळश'मां ८मी ढाळ छे : 'पूरण कळश शुचि उदकनी धारा, जिनवर अंगे नामे'२ आ कृतिमां ढाळ-३ देशी ललनानी कही, आ देशीनां जाणीतां गीत तरीके 'पूरण कळश...... नामे रे' पंक्ति आपी छे जे कवि श्रीदेवचन्द्रजीना कळशना समय बाद आ कळश रचायो होवानुं इंगित आपे छे. कर्तानाम स्पष्ट नथी. अंते आवती 'ज्ञान महोदय पद लहे' पंक्तिमां कवि पोतानुं नाम जणाव्युं छे तेम मानी शकाय. जो ज्ञान महोदये आ कळश लख्यो छे तो ते ज्ञान महोदय कया ? शुं ते शान्तिनाथनो कळश'ना रचयिता श्रीज्ञानविमल होई शके ? आ प्रश्न थाय छे. अन्य कळशोमा छे तेम अहीं पण श्रीजिनेश्वरनो (अहीं संभवनाथनो) जन्म महोत्सव वर्णव्यो छे. माता चौद स्वप्नो जुओ छे, सुपनपाठकने राजा बोलावे छे, फळ सांभळी राजी थाय छे, जन्म बाद छप्पन दिग्कुमारीओ न्हवरावे ने इन्द्रनुं आसन चलित थाय एटले इन्द्र पण भगवानना जन्मना समाचार जाणी, पोताना समग्र परिवार साथे पंचरूपे प्रभुने ग्रही, पांडुकवनमां धामधूमथी जन्महोत्सव उजवे छे अने राजमहेलमां सौने अवस्वापिनी निद्रामां डूबाड्या हता तेने अपहरे छे अने बत्रीस कोडि सुवर्णनी वृष्टि करे छे. अंते कवि जणावे छे के जे आ 'संभवनाथकलश' भणशे तेने रिद्धिवृद्धि थशे तथा नव निधि अने आठ सिद्धिओ प्राप्त थशे. उपलब्ध स्नात्रपूजामां पांच के सात जिणंदाने कुसुमांजलि अर्पण थती वर्णवी छे ते पैकी अंते आवतो 'कळश अनुक्रमे श्रीआदिनाथ, श्रीशान्तिनाथ, श्रीपार्श्वनाथ तथा श्रीसर्व जिणंदानो रचायो छे. श्रीनेमिनाथ तथा श्रीमहावीर स्वामिना कळशो उपलब्ध थया नथी. हवे 'श्रीसंभवनाथकलश'नी कृति प्राप्त थता, दरेक जिनेश्वरना अन्य कळशो पण रचाया होवानो संभव लागे छे. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 अनुसंधान-२७ टिप्पण: (१) विविध पूजासंग्रह - पृ. ३४ (२) एजन, पृ. ४६ (नोंध : कलशनी प्रारम्भिक पंक्तिओमा 'श्रीसूर्यपुरमंडणो' एवं पद छे, ते उपरथी एम जणाय छे के सूर्यपुर-सूरतना श्रीसंभवनाथ चैत्यने अनुलक्षीने आ कलश रचायो होवो जोईए. -सं.) ज्ञान महोदयकृत (?) संभवनाथकलश ॐ नमः । स्वस्तिश्रियां मंदिरमिइ वंद्य, सम्यक्त्वदेवद्रुमवारिवाहं । रत्नात्रयाराधनपुष्टहेतुं, सस्नपते संभवनाथबिंब ॥१॥ एहवा श्री संभवनाथ, अनाथना नाथ तारण भवजल पाथ, साचो शिवपुरी साथ, सकल मंगलैकनिलय, स्यादवाद विद्याना आलय, भव्यजन मनरंजणो, दुष्टाष्ट कर्मभंजणो, अनादिकालीन विभाव विहंडणो, श्री सूर्यपुरमंडणो- इक्ष्वाकु वंश विभूषणो, श्रीजितारि भूप कुलकमल दिनेश्वर, श्रीसंभवनाथ जिनेश्वर, तेह तणो कलश भणिसुं । (हां रे जिनजननी जिनने ए देशी) श्रीजंबूधीपें दक्षिण भरत मझार तस मध्य खंडे, नयरी सावत्थी सार, राज्य करें श्रीभूप जितारी नाम तस व्या(मा)ता सेना शीलगुणें अभिराम ॥१॥ उवरिमहिट्ठिम वर ग्रैवेयकथी देव फागुण सुदि अष्टमी चवी उपजें ततखेव Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 53 मृगशिर नक्षत्रे मिथुन राशे रह्यो चंद मज्झिम रयणी समें गर्भ धरें अमंद ॥२॥ तव रानी पेषे(खें) सुपना दश में च्यार तस वर्णन अनोपम, कहिंता नावे पार पहिले जग।गजादीठो बीजे वृषभ उदार त्रीजे हरि, चोथो श्रीदेवी श्रीकार ॥३।। पांचमे वर पुष्पनी माला, छठे चंद, सातमे दिनकारक, आठमे धजा आनंद नवमें शुभ कलश, दशमें पद्म तडाग ईग्यारमें सागर, देवविमान उत्तंग ॥४॥ तेरमें मणि रासी चौदमे निधूम अग्नि शुभ सुपनां देखी राणी था मग्न जागी प्रिऊ पासें आवी वात कहंत नृप सुपन पाठकने तेडी फूल पूछंत ।।५।। ढाल नवमें मासें ने सातमें दिवसें संभव जिनवर जायाजी मागशिर सदि चौदसि मध्य रातें छपन कमरी न्हवरायाजी ततखिण चौसठि हरिनां आसण साथें कंपित थावेजी निज निज हरिणगमेषी बोलावी निज निज तूर वजडावेंजी ॥६॥ तिहां भुवनपतीना वीसें सुरपति, शंख शबद संभलावेंजी सात कोडि बहोत्तर लख भुवनना देव मिली तव आवेंजी भुवनपतीना सामानिक सुर दुगलष(ख)दुतीस हजारजी एहना अंग रक्षवा नव लाष(ख)ने अडवीस सहस उदारजी ॥७॥ त्रायत्रिंशक पण षटमहिषी लोगपाल वली च्यारजी सात अनीक नै तीन परखदा इम कोडिगमें परिवारजी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 अनुसंधान-२७ प्रत्येके हरि साथें आवी मंदर भूधर जावेंजी अभियोगिक सुर तिहां हरि हुकमें क्षीरसमुद्र जल ल्यावैजी ॥८॥ व्यंतरना बत्रीसें सुरपति निज निज नगरो मझारजी पडह निनाद सुर तेडाया आया हरख अपारजी एक लाख ने अडवीस सहसा सामानिक सुर मेहनाजी पांच लाख ने द्वादश सहसा आतम रक्षक जेहनाजी ॥९॥ सात अनीक में तीन परखदा अग्रमहिषी च्यार च्यारजी अभियोगिक सुर कोडिगमें तिहां प्रत्येके परीवारजी इणि परें व्यंतरना सह नायक कनकाचल परें आवेंजी तीरथ जल ने सरसव मृत्तिका कुसुम कलश अणावेंजी ॥१०॥ ढाल : ३ देशी ललनानी (पूरण कलश शुचि उदकनी धारा जिनवर अंगे नामे रे) देती जोतीसीना दोय इंद्र, शशी रवि आसन चलियां ताम रे सिंहनादें सवि सुर तेडाया, आवे मन अभिराम रे ॥१॥ जवनव वाहन नवनव भूषण, नवनव वेष बनावें रे अष्ट सहस सामानिक बेहूना, ते पणि साथें आवे रे ॥२!! बत्रीस सहसा आतमरक्षक, इंद्राणी च्यार च्यार रे सात अनीक में तीन परखदा, आवें हरख अपार रे ॥३॥ अभियोगिक सुर पणि वली एहना, आवें कोडाकोडी रे केई निज भक्ते केई आचारे, प्रिया मित्र होडाहोडी रे ||४|| वलिय प्रकीर्णक विबुधा विविध, भक्ति करण जिनराज रे कंचनगिरि पर आवें सघला, जन्म महोच्छव काज रे ॥५॥ ढाल - ४ (नमो रे नमो श्री सेज गिरिवर (देशी) जनममहोच्छ्व स्नात्र करेवा वैमानिक दश इंदा रे, आसन चलित ने अवधि प्रयुंजे, जाणे जनम जिणंदा रे ॥१६ ज०।। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 ततखिण हरिणगमेषी बोलावी, घंट सुघोष वजडावे रे बीस लाख विमानना सुरनें मोहनी निद्रा गमावे रे ॥१७ ज० ॥ कलपोपपन्न विमाननी संख्या, जाणो चुलसी लाख रे सहस छनू ने लातसें उपर, एहवी प्रवचन साख रे ॥१८ ज० ॥ सोहम सुरपति पालक जानें, लाख जोयण जस मान रे मध्य भागें बेठा हरी पोतें, सिंहासने शुभ थान रे || १९ ज० ॥ सन्मुख आठ इंद्राणी बेसें, वामें सामानिक देवा रे सहस चोरासी भद्रासन तेहना, जिमणा परखद देवा रे || २० ज० ॥ हरियाबल सात कटकना स्वामी, तस भद्रासन सात रे चिहुं दिशें चुलसी चुलसी सहसा, अंगरक्षकना अवदात रे || २१ ज० ॥ आयुध लेईनें चिहु दिशि ऊभा, हरि सनमुख कर जोडि रे तीन लाख नें छत्रीस सहसा, आत्मरक्षक मन कोडि रे ॥२२ ज०।। सामानिक सुर छेक रे अभियोगिक अनेक रे ॥२३ ज० ॥ इम कल्पवासी सहु सुरपतिना पांच लाख ने षोडश सहसा, वीस लाख नें चोसठ सहसा, अंगरक्षकना मान रे अभिनव वाहन अभिनव भूषण, अभिनव रविय विमान रे ॥ २४ ज० ॥ चौसठि इद्रना सामानिक सुर अडलख चूलसी हजार रे अंगरक्षक सुर पांत्रीस लाख, छत्रीस सहस उदार रे || २५ ज० ॥ नंदीसरे आवी जान संकोची, आवे मेरु गिरिंदे रे चार निकायका सुर सुरी मिलीया, मनमां अति आनंद रे || २६ ज० ॥ ढाल ५ (इम जिननी पूजा करी हे साहिब ए देशी) - नंदीसरवर दीपथी ते साहिब नंदिसरवर दीपथी, आवें सोहम इंद्र जनमपुरी जिन - जननीने प्रणमें मन आनंद ॥२७ नं० ॥ 55 रतनगर्भा तुझ कूखिमा, ऊपन्ना रतन्न जनम महोच्छव कारणें, आव्यो शुभ मन्न ॥२८ नं० ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 अनुसंधान-२७ इम कही दें परिवारने, अवस्वापिनी नींद प्रतिबिंब तिहां थापीने, चाल्या मेरु गिरिंद ॥२९ नं० ॥ पंच रूपें प्रभुनें ग्रही, आवें पांडुकवन्न तिहां चोसठि सुरपति मिल्या, हरख्या भवि मन ॥३० नं० ॥ दक्षिण दिशि सिंहासने, शकु लीइं रे उत्संग इम कोडि सठि लाख कलश लैं, स्त्रात्र करें हरिरंग ॥३१ नं०।। इणि परें जनम महोच्छव करी, करें समकित शुद्ध अनुभव रस आस्वादता, सवि मघवा विबुद्ध ॥३२ नं०।। तदनंतर शक्रेन्द्रजी लेई प्रभूने उल्हास अंगूठे अमृत ठवी, मेलें पो(मा)ताने पास ॥३३ नं०|| स्वापिनी निद्रा अपहरी, करें रतननी वृष्टि बत्रीस कोडि सुवर्णनी, प्रभु पुण्य गरिष्ट ॥३४ नं० ॥ नंदीसरे उत्सव करी, सुर गवा निज ठाण प्रभु गुण गण गंगा जलें, करता पवित्र अपाण ॥३५ नं० ॥ इम जे भवि जिनराजना, करें पूजा सनाथ सकल कुशल संपत्ति लहें, करें कर्म प्रमाथ ॥३६ नं० ॥ श्रीसंभवनो कलस ओ भणतां रिद्धिवृद्धि ज्ञान महोदय पद लहें, नव निधि अड सिद्धि ॥३७ नं०॥ इति श्री संभवनाथ प्रभूनो कलश संपूर्ण -x Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ March-2004 दुगलख अडवीस कोडिगमे गवा विहंडणो प्रिऊ अघरा शब्दोनी यादी बे लाख अठ्ठावीस करोडोनुं गया विनाशक प्रिय, प्रेमी एक वाद्य - , बत्रीस - चोरा/शी जैन-परंपरा-मान्य नव ग्रैवेयक देवो पैकी सातमा ग्रैवेयक देव-कल्पनुं नाम. यान (विमान) दुतीस चुलसी उवरिमहिछिम जान सनाथ