Book Title: Sambhavnath Kalash
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ March-2004 53 मृगशिर नक्षत्रे मिथुन राशे रह्यो चंद मज्झिम रयणी समें गर्भ धरें अमंद ॥२॥ तव रानी पेषे(खें) सुपना दश में च्यार तस वर्णन अनोपम, कहिंता नावे पार पहिले जग।गजादीठो बीजे वृषभ उदार त्रीजे हरि, चोथो श्रीदेवी श्रीकार ॥३।। पांचमे वर पुष्पनी माला, छठे चंद, सातमे दिनकारक, आठमे धजा आनंद नवमें शुभ कलश, दशमें पद्म तडाग ईग्यारमें सागर, देवविमान उत्तंग ॥४॥ तेरमें मणि रासी चौदमे निधूम अग्नि शुभ सुपनां देखी राणी था मग्न जागी प्रिऊ पासें आवी वात कहंत नृप सुपन पाठकने तेडी फूल पूछंत ।।५।। ढाल नवमें मासें ने सातमें दिवसें संभव जिनवर जायाजी मागशिर सदि चौदसि मध्य रातें छपन कमरी न्हवरायाजी ततखिण चौसठि हरिनां आसण साथें कंपित थावेजी निज निज हरिणगमेषी बोलावी निज निज तूर वजडावेंजी ॥६॥ तिहां भुवनपतीना वीसें सुरपति, शंख शबद संभलावेंजी सात कोडि बहोत्तर लख भुवनना देव मिली तव आवेंजी भुवनपतीना सामानिक सुर दुगलष(ख)दुतीस हजारजी एहना अंग रक्षवा नव लाष(ख)ने अडवीस सहस उदारजी ॥७॥ त्रायत्रिंशक पण षटमहिषी लोगपाल वली च्यारजी सात अनीक नै तीन परखदा इम कोडिगमें परिवारजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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