Book Title: Samacharishatakama
Author(s): Samaysundar,
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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सामाचारीशत
पूर्व करेमि
OSASAUCISSESSOAS
प्रश्नोत्तरमयं सामा-चारी नामेदमद्भुतम् । शास्त्रं सुविहिताचार-विचारप्रतिपादकम् ॥६॥ श्रीमत्खरतरे गच्छे, श्रीजिनचन्द्रसूरयः। युगप्रधाना इत्याख्या, प्रापिताः पातिसाहिना ॥७॥
भंते ! पतत्पट्टाम्बुजमार्तण्डा, महाभाग्या बहुश्रुताः। श्रीजिनसिंहसूरीन्द्रा, विजयेते उभौ गुरू ॥८॥
श्चात् इरिश्रीजिनचन्द्रसूरीणां, विनेयः प्रथमोऽभवत् । गणिः सकलचन्द्राख्यो, गोत्र'रीहड'भूषणम् ॥९॥ यावहियं तेषां प्रसादमासाद्य, शिष्यः समयसुन्दरः । प्रश्नोत्तरशते पञ्च, प्रकाशाँस्तनुते क्रमात् ॥१०॥
अधिकारः तत्र-प्रथमं श्रीमद्भहत्खरतरगच्छे क्रियमाणसामाचारीक्रियानुष्ठानानि शास्त्रसम्मत्या शिष्यप्रश्नोद्देशेन समर्थयन्नाहननु-श्राद्धानां सामायिकग्रहणे सामायिकदण्डकोच्चारानन्तरम् ईपिथिक्या प्रतिक्रमणम् , उत पूर्वमीर्यापथिक्याः प्रतिक्रमणं, पश्चात् सामायिकदण्डकोच्चारः ? उच्यते-सामायिकदण्डकोच्चारानन्तरं ईर्यापथिक्याः प्रतिक्रमणं सङ्गतिमङ्गति। तथैव सर्वत्र शास्त्रेषु दृश्यमानत्वाद्, यदाहुः श्रीहरिभद्रसूरयः श्रीआवश्यकबृहद्वृत्ती-(पत्रं ८३२) __ एत्थ पुण सामायारी-सामाइयं सावगेण कहं काय? ति, इह सावगो दुविहो इडिपत्तो अणिडिपत्तो अ, जो सो अणिड्डिपत्तो सो चेईअघरे १ साहुसमीवे वा २ घरे वा ३ पोसहसालाए वा ४ जत्थ वा-वीसमइ अच्छते वा निवावारो सबत्थ करेइ तत्थ, सर्व चउसु ठाणेसु नियमा कायवं-चेईअघरे-साहुमूले-पोसहसालाए वा-घरे, आवस्सगं करेंतोत्ति । तत्थ 19 ॥१ ॥ जइ साहु-सगासे करेइ तत्थ का विही?, जइ परंपरभयं नत्थि, जइवि य केणइ समं विवाओ नत्थि, जइ कस्सइ ण धरेइ, मा तेण अंच्छविअच्छियं कजिहित्ति, जइ य धारणगं दळूण न गेण्हइ, मा णिजिहित्ति । जइ वावारं न वावारेति ताहे घरे चेव ।
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