Book Title: Sadyavatsa Kathanakam
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 93
________________ हर्षवर्धन-गणि-कृतं सदयवत्स-कथानकम् दिया तथा वचन दिया कि जब कभी उसे उनकी मदद की आवश्यकता पडे तब वह अवश्य आएगें। सदयवत्स और सावलिंगा ने बाद में वह स्थान छोड़ दिया । आगे बढने पर वे एक उजाड नगर में आये जहाँ पर राजा नन्दा के खजाने की अधिष्ठाइ दैवी अनके सामने प्रकट हुइ और उसे खजाना देना चाहा किन्तु उसने यह कह कर कि प्रजा के कहे बगैर वह उसे नहीं ले सकता, आगे बढ गया। प्रतिष्ठान पहुँचकर उसने सावलिंगा को एक भाट के सरंक्षण में छोड़ दिया और प्रतिष्ठान की ओर रवाना हो गया ताकि वहाँ पर द्यूत खेलकर कुछ पैसा इकठ्ठा कर सके । जैसे ही वह नगर में प्रवेश हुआ उसने एक ढूंठ को देखा । उसने इसे अपशकुन माना । उस व्यक्ति ने उसे बताया कि वह सिंहल का राजकुमार है तथा प्रतिष्ठान में आकर द्यूत में अपना सभी माल हार गया तथा जब वह बाकी रकम अदा नहीं कर सका, तब जुआरियों ने उसकी यह हालत कर दी । सदयवत्स ने उसे अपना विश्वसनीय दोस्त बना लिया। बाद में वे दोनों सूर्य देवता के मन्दिर में आये जहाँ पर राजनर्तकी कामसेना तथा नगर के एक व्यापारी के बीच झगडा हो रहा था। राजनर्तकी नगर सेठ के लडके सोमदत्त से उसके स्वप्न में उसके साथ किये सहसयन के लिये पाँच सौ स्वर्ण मौहरे माँग रही थी। बाद में दोनों पक्षकारों ने सदयवत्स को निर्णायक घोषित किया। उसने दोनों पक्षों के झगडे को निपटाते हुए निर्णय दिया कि राजनर्तकी की माँ को उसके द्वारा मांगे गये सिक्कों की दर्पण छबी प्रस्तावित की जाय । उक्त रूपये उसने दर्पण के सम्मुख रख दिया । कामसेना को जब इस बात का पता लगा कि एक सुन्दर नवयुवक नगर में आया है तब वह उससे मिलने मन्दिर में आ गई । सदयवत्स को देखते ही वह प्रथम दृष्टि में उस पर मोहित हो गई तथा उसने उसके सम्मुख मन्दिर में नृत्य किया । नृत्य इतना तनमय होकर किया कि उससे थककर वहीं गिर पड़ी। राजवैधने उसे बताया कि उसे प्रेम रोग हो गया है। कामसेना ने सदयवत्स को अपने पास रहने के लिये बुलाया। जब सदयवत्स ने 'ढूंठा' से उसकी राय पूछी तब उसने उसे नर्तीकाओं के हथंकडे से सावधान रहने को कहा । किन्तु कामसेना ने 'ठूठा' को अपनी छोटी बहिन सौंपकर उसे खुश कर दिया। बाद में दोनों वहीं रहने लगे। इस प्रकार उनके रहने की समस्या का समाधान हो गया । दूसरे दिन सदयवत्स द्यूतशाला गया तथा वहाँ पर उसने काफी धन जीता । थोड़ा धन उसने कामसेना को

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