Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 12
________________ निराकांक्ष-कांक्षा श्री गुरुवर! वरदान दीजिए, विनयी खड़ा विनेय! ज्ञेय! अज्ञेय-ज्ञेय अवदान दीजिए, श्री गुरुवर! वरदान दीजिए॥ 'समणोऽहं' 'समणोऽहं' की धुन मेरे कण-कण में रम जाए, चर्या भाव-क्रिया बने विक्रिया, विकल्प सहज थम जाए, संयम सुरभित शासन पावन नन्दन वन सावन सरसाए, आज्ञा, अनुशासन जीवन-धन, जन-जन कली-कली विकसाए, हम सब सौरभमय बन जाएं ऐसा मंत्र-विधान दीजिए, श्री गुरुवर! वरदान दीजिए। पांच महाव्रत पांच समिति में जागृत अविकल कुशल बनूं मैं, तीन गुप्ति आराधूं, साधू वीतराग कल अकल बनूं मैं, लोच, गोचरी, वस्त्र-पात्र, उपकरण-याचना, प्रतिलेखन में, प्रतिक्रमण विधियुक्त प्रमार्जन, जल-गालन, रक्षण-सेवन में, स्थविर, ग्लान, रुग्ण-सेवा में व्यान-वायु मय प्राण दीजिए, श्री गुरुवर! वरदान दीजिए। क्या सचित्त? क्या है अचित्त? क्या कल्पाकल्प ज्ञान हो जाए, परम्परा, व्यवहार, धारणा, विधि-उत्सर्ग भान हो जाए, 'साध्वाचार-सूत्र-संग्रह' यह श्री चरणों में भेंट चढ़ाऊं, चर्चा शिखर पर, पर्दू संघ को, बढूं, गहूं इतिहास सझाऊं, मांग रहा आशीष शिष्य रजनीश' सिद्ध संधान दीजिए, श्री गुरुवर! वरदान दीजिए॥ अणुविभा केन्द्र, जयपुर मुनि रजनीश १२ जुलाई २००८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 184