Book Title: Sadhwachar ke Sutra
Author(s): Rajnishkumarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ (१०) अनभिज्ञ हैं। एक परिवार में भिक्षा के लिए जाना हुआ। वहां भिक्षा लेते समय मैंने दो-तीन बार पूछा-सचित्त वस्तु का संघट्टा तो नहीं है? परिवार के सदस्यों ने कहा-आप क्या कहते हैं? हम समझे नहीं। तब मैंने उनको सचित्त-अचित्त की परिभाषा समझाई। प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम प्रकरण में महाव्रत, दूसरे प्रकरण में आठ प्रवचन माता, १६वें प्रकरण में सचित्त-अचित्त तथा १७वें प्रकरण में सूझते-असूझते का सुन्दर और सुगम वर्णन किया गया है। इसी प्रकार प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, आलोचना, कल्प, शय्यातर, भण्ड-उपकरण तथा प्रातिहारिक आदि प्रकरणों में साध्वाचार से संबंधित विषयों का अच्छा विवेचन है। इन वर्षों में इन विषयों पर बहुत कम लिखा गया है। मुनि रजनीश कुमारजी ने गहरा अध्ययन कर साध्वाचार से संबंधित सभी प्रमुख विषयों का संकलन किया है। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं । इस पुस्तक के द्वारा एक अभाव की पूर्ति होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। मुनि राकेश कुमार १२ जुलाई २००८ अणुविभा केन्द्र (जयपुर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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