Book Title: Sadhu Shri Pruthvidhar karit Jinbhuvan Stavanam
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ अनुसन्धान-५५ प्रवर्ततुं होय तेवू अनुमान थाय छे. आ कारणे घणां क्षेत्रोमां जैनोनो वसवाट होवा छतां जैन मन्दिरनुं निर्माण शक्य नहोतुं बनतुं. पेथडशाहे पोतानी उदारताथी व्यापक समाजने अनुकूळ कर्यो, अने हकारात्मक मुत्सद्दीवटथी राज्योना राजाओ तथा अमात्योने जीती लीधा. आना कारणे प्रतिकूल क्षेत्रोमां पण तेमने जैन देरासरना निर्माणनी अनुमति मळी अने तेमणे विविध स्थळोमां मन्दिरो बंधावी त्यां त्यांना जैनोने आश्वस्त पण कर्या, अने बे धर्मोना पारस्परिक विसंवाद-कोमवादने ठारी पण दीधो. आवा आ पेथड मन्त्रीए केटलां देरासरो अने ते क्या क्यां बंधायेलां, तेनी ऐतिहासिक नोंध आपतुं आ स्तोत्र अत्रे प्रगट थई रह्यं छे, जे वांचवाथी पेथडशाहनी अद्भुत क्षमतानो परिचय लाध्या विना नहि रहे. स्तोत्रना कर्ता अज्ञात छे. मित्र मुनिवर श्रीधुरन्धरविजयजीए विहार दरम्यान क्यांकथी प्राप्त पानांनी नकल मोकलेली, ते परथी आ सम्पादन करेल छे. ते पार्नु १५मा सैकानु होय तेवू अनुमान छे. पेथडशाहनो समय १४मो शतक छे. 'सुकृत सागर' नामे तेमनुं जीवन-चरित्र (संस्कृत) प्रसिद्ध छे. - स्तवनना कर्ताए, योग्य रीते ज पेथडशाहने, सम्प्रति राजा, कुमारपाळ राजा अने वस्तुपालमन्त्रीना वारसदार के अनुगामी तरीके वर्णव्या छे. (श्लोक ४) प्रथम पांच श्लोकोमां कर्ताए पेथडशाहनां धर्मकृत्योर्नु वर्णन करतां जे महत्त्वनी वातो नोंधी छे ते आ प्रमाणे छे : १. पेथडनुं खरं नाम साधु पृथ्वीधर छे, (साधु → शाह, पृथ्वीधर → पेथड). २. तेना राजवीनुं नाम जयसिंह राजा छे. ३. तेणे अनेक पौषधशालाओ (जैन उपाश्रयो) निर्मावी हती. ४. पार्श्वनाथनी ते पूजा-उपासना करतो. ५. त्रिकाल जिनपूजा अने बे टंक श्रावकोचित आवश्यक क्रिया ते करतो. ६. पर्वदिवसे पौषध करतो. ७. साधुनी भक्ति करतो, अने साधर्मिक बन्धुनी खूब वैयावच्च-सेवा करतो. ७. सौथी अगत्यनो तेमज ऐतिहासिक गणाय तेवो उल्लेख अहीं ए मळे छ के - 'विद्युन्माली' नामे देवे बनावेल, 'देवाधिदेव' एवा नामे प्रख्यात, भगवान् महावीर (ज्ञाततनूरुह)नी प्रतिमानी ते पूजा करतो हतो.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8