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मई २०११
साधुश्रीपृथ्वीधरकारितजिनभुवनस्तवनम् ॥
- शी.
मध्ययुगमां भारतवर्षना, विशेषतः पश्चिम अने मध्य भारतमां थयेला, शूरवीर, दानवीर, सत्त्वशाली अने मुत्सद्दी जैन मन्त्रीओ थकी जैन संघ अने धर्म खूब ऊजळो छे. आ मन्त्रीओए जैनधर्म / संघनी सेवा तो करी ज, परन्तु तेथी अधिक तेमणे राष्ट्र, राज्य अने समग्र समाजनी दाखलारूप सेवा बजावी हती. तेओ धर्मे जैन होवाने कारणे तेमणे करेली आदर्श राष्ट्रसेवाने तथा राष्ट्रकक्षानां तेमनां कार्योने नजरंदाज न करी शकाय. आ मन्त्रीओमां गूर्जर राष्ट्रना मन्त्रीओ विमलशाह अने वस्तुपाल-तेजपाल जेम मुख्य छे, तेम मूळे गुजराती पण मण्डपदुर्ग-माण्डूना महामन्त्री साधु पृथ्वीधर एटले के पेथडशाहनुं नाम पण अग्रिम पंक्तिनुं गणी शकाय तेम छे.
आ मन्त्रीओ पोताना धर्ममां अडग अने परायण हता. धर्मना क्षेत्रे तेमणे जे कार्यो कर्यां ते कार्यो तेमज तेमनी उदारता अजोड ज रही छे. आम छतां तेमनी बे विशेषता नोंधपात्र छ : १. तेमणे पोतानां धर्मकार्योमां राज्यनी तिजोरीनो कदापि लेश पण उपयोग नथी कर्यो; जे पण खर्च धर्म माटे कर्यु ते बधुं, पोतानी हकनी, नीति अने न्यायथी तेमज कायदा पूरुं पालन करीने कमायेली सम्पत्तिमांथी ज कर्यु. २. राज्यना वहीवटमां, युद्ध आदि कृत्योमां तेमज समग्र प्रजाने लागु पडती तमाम बाबतोमां, तेमणे पोताना धर्मने के धार्मिक मान्यताओ के लागणीने कदापि आडे आववा नथी दीधी.
पेथडशाह तेमनी राज्यभक्ति, राज्य तथा राजा प्रत्येनी वफादारी तथा मुत्सद्दीवट माटे पंकायेला मन्त्री हता. न्याययुक्त राज्यवहीवट अने शत्रुओने बुद्धिबलथी वश के नाबूद करवानी कुनेहने कारणे तेओ राजा-प्रजाने प्रिय हता. तो ब्रह्मचर्यना विशद पालनथी ओपता सदाचार तेमज अजोड जिनभक्ति, संघर्नु नेतृत्व, दान तेमज उदारता इत्यादिने कारणे तेओ प्रखर धार्मिक जन तरीके पण पंकाया हता.
पेथडशाहना काळमां अनेक स्थानोमां जैनो तथा ब्राह्मणो वच्चे वैमनस्य
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अनुसन्धान-५५
प्रवर्ततुं होय तेवू अनुमान थाय छे. आ कारणे घणां क्षेत्रोमां जैनोनो वसवाट होवा छतां जैन मन्दिरनुं निर्माण शक्य नहोतुं बनतुं. पेथडशाहे पोतानी उदारताथी व्यापक समाजने अनुकूळ कर्यो, अने हकारात्मक मुत्सद्दीवटथी राज्योना राजाओ तथा अमात्योने जीती लीधा. आना कारणे प्रतिकूल क्षेत्रोमां पण तेमने जैन देरासरना निर्माणनी अनुमति मळी अने तेमणे विविध स्थळोमां मन्दिरो बंधावी त्यां त्यांना जैनोने आश्वस्त पण कर्या, अने बे धर्मोना पारस्परिक विसंवाद-कोमवादने ठारी पण दीधो.
आवा आ पेथड मन्त्रीए केटलां देरासरो अने ते क्या क्यां बंधायेलां, तेनी ऐतिहासिक नोंध आपतुं आ स्तोत्र अत्रे प्रगट थई रह्यं छे, जे वांचवाथी पेथडशाहनी अद्भुत क्षमतानो परिचय लाध्या विना नहि रहे. स्तोत्रना कर्ता अज्ञात छे. मित्र मुनिवर श्रीधुरन्धरविजयजीए विहार दरम्यान क्यांकथी प्राप्त पानांनी नकल मोकलेली, ते परथी आ सम्पादन करेल छे. ते पार्नु १५मा सैकानु होय तेवू अनुमान छे. पेथडशाहनो समय १४मो शतक छे. 'सुकृत सागर' नामे तेमनुं जीवन-चरित्र (संस्कृत) प्रसिद्ध छे.
- स्तवनना कर्ताए, योग्य रीते ज पेथडशाहने, सम्प्रति राजा, कुमारपाळ राजा अने वस्तुपालमन्त्रीना वारसदार के अनुगामी तरीके वर्णव्या छे. (श्लोक ४) प्रथम पांच श्लोकोमां कर्ताए पेथडशाहनां धर्मकृत्योर्नु वर्णन करतां जे महत्त्वनी वातो नोंधी छे ते आ प्रमाणे छे :
१. पेथडनुं खरं नाम साधु पृथ्वीधर छे, (साधु → शाह, पृथ्वीधर → पेथड). २. तेना राजवीनुं नाम जयसिंह राजा छे. ३. तेणे अनेक पौषधशालाओ (जैन उपाश्रयो) निर्मावी हती. ४. पार्श्वनाथनी ते पूजा-उपासना करतो. ५. त्रिकाल जिनपूजा अने बे टंक श्रावकोचित आवश्यक क्रिया ते करतो. ६. पर्वदिवसे पौषध करतो. ७. साधुनी भक्ति करतो, अने साधर्मिक बन्धुनी खूब वैयावच्च-सेवा करतो.
७. सौथी अगत्यनो तेमज ऐतिहासिक गणाय तेवो उल्लेख अहीं ए मळे छ के - 'विद्युन्माली' नामे देवे बनावेल, 'देवाधिदेव' एवा नामे प्रख्यात, भगवान् महावीर (ज्ञाततनूरुह)नी प्रतिमानी ते पूजा करतो हतो.
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सिन्धु-सौवीरदेशना राजा उदयन द्वारा पूजित 'जीवन्तस्वामी' तरीके निर्मित ते प्रतिमा 'वीतभयपत्तन'ना ध्वंस-समये जमीनमां दटाई हती. विक्रमना १२मा सैकामां, श्रीहेमचन्द्राचार्यना कहेवाथी, राजा कुमारपाले, ते प्रदेशमां उत्खनन करावीने ते प्रतिमा सम्प्राप्त करेली, अने ते तेने पाटण लई आव्यानो उल्लेख, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'ना दशमा पर्वमां उपलब्ध छे. परन्तु त्यार पछी ते प्रतिमानुं शुं थयुं तेनो संकेत मळतो नथी. प्रस्तुत स्तोत्रना बीजा पद्यमां ते विषे स्पष्ट निर्देश सांपडे छे, ते ऊपरथी अनुमान थई शके के ते प्रतिमा कोई पण प्रकारे बची गई के बचावी लेवामां आवी हशे; अने कालान्तरे ते मध्य प्रान्त-मालव देशमां पहोंची हशे, जे माण्डूना मन्त्री पेथडशाहना अखत्यारमां देखा दे छे. आ उल्लेख साचे ज इतिहासनो एक महत्त्वनो अंकोडो बनी रहे तेम छे.
८. छठ्ठा पद्यमां नोंधायेल संवत् १३२० वर्ष सुधीमां अथवा तो १३२० थी प्रारंभीने पेथडशाहे कया कया क्षेत्रमा कया कया जिनालयो कराव्यां, तेनी यादी अथवा तालिका आ प्रमाणे छे. स्तोत्रना ६ थी १५ – एटलां पद्योमां थयेल वर्णनने अनुसारे आ तालिका गोठवी छे : १. 'मण्डपगिरि(मण्डपदुर्ग)
आदिनाथ चैत्य २. निम्बस्थूर-पर्वत
श्रीनेमिनाथ-चैत्य
तेनी तलेटीमां पार्श्वनाथ-चैत्य ३. उज्जयिनी
पार्श्वनाथ-चैत्य ४. विक्रमपुर
नेमि-चैत्य ५. मुकुटिका पुरी (महुडी ?) पार्श्वनाथ तथा आदिनाथ (बे चैत्य) ६. विन्धनपुर
मल्लिनाथ-चैत्य ७. आशापुर
पार्श्व-चैत्य ८. घोषकीपुर
आदिनाथ-चैत्य ९. अर्यापुर
शान्तिनाथ-चैत्य १. स्तोत्रकार मण्डपगिरिने शत्रुजयसमान अने निम्बस्थूरपर्वतने उज्जयन्त-समान वर्णवे छे.
अर्थात् ते बे पर्वत ऊपर क्रमशः शत्रुजयावतार अने उज्जयन्तावतार चैत्यो मन्त्रीए बनाव्या.
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१०. धारानगर
११. वर्धनपुर
१२,१३. चन्द्रकपुरी तथा जीरापुर
१४, १५. जलपद्रपुर, डाहडपुर १६. हंसलपुर
१७. मान्धातृमूल
१८. धनमातृकापुर
१९. मङ्गलपुर २०. चिक्खलपुर २१. जयसिंहपुर
२२. सिंहानक
२३. सलक्षणपुर
२४. इन्द्रीपुर
३०. लम्बकर्णीपुर
३१. संखोड (संखेडा ? )
३२. चित्रकूटपर्वत (चित्तोडगढ)
३३. पर्णविहारपुर
३४. डण्डानक
३५. वंकी (वांकी?, वांकली?)
३६. नीलकपुर
३७. नागपुर (नागोर)
२५. ताल्हणपुर
२६. हस्तिनापुर
अरनाथ-चैत्य
२७. करहेटक (करेडा)
पार्श्व-चैत्य
२८. नलपुर दुर्ग (के नलपुर अने दुर्ग ? ) नेमि चैत्य
२९. विहारक,
वीर-चैत्यो(बे)
३८. मध्यकपुर
३९. दर्भावतिकापुर (डभोई)
४०. नागद्रह (नागदा )
नेमिजिन-चैत्यो (बे)
बे आदि-चैत्यो
बे पार्श्व-चैत्यो
अरनाथ-चैत्
अजितनाथ-चैत्य
आदि-चैत्य
अभिनन्दन-चैत्य
पार्श्व-चैत्य
महावीर - चैत्य
नेमि-चैत्य
पार्श्व-चैत्य
पार्श्व-चैत्य
शान्ति- चैत्य
कुन्थुनाथ-चैत्य
ऋषभ - चैत्य
आदि-चैत्य
पार्श्व-चैत्य
आदि-चैत्य
अजित चैत्य
आदि-चैत्य
पार्श्व-चैत्य
अनुसन्धान-५५
चन्द्रप्रभ-चैत्य
नमि-चैत्य
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मल्लि-चैत्य पार्श्व-चैत्यो (बे)
मुनिसुव्रत-चैत्य, साथे वीरप्रभु. नेमि-चैत्यो (बे)
चन्द्रप्रभ-चैत्य पार्श्व-चैत्यो (चार)
नेमि-चैत्य
सर्वत्र वीर-चैत्य (६)
४१. धवलक्कनगर (धोळका) ४२. जीर्णदुर्ग (जूनागढ) ४३. सोमेश्वरपत्तन (सोमनाथ-प्रभास) ४४. शङ्खपुर ४५. सौवर्त्तक । ४६. वामनस्थली (वणथली-वंथली) ४७. नासिक्यपुर(नासिक) ४८,४९. सोपारकपुर, रुणनगर,) ५०,५१. घोरंगल, प्रतिष्ठान ) ५२. सेतुबन्ध ५३,५४,५५,५६,५७,५८. वठपद्र (वडोदरा)
नागलपुर, टक्कारवा (टंकारा?), जालन्धर (जलंधर?), देवपालपुर,
देवगिरि ५९. चारूप ६०. द्रोणत । ६१. रत्नपुर । ६२. अर्बुकपुर ६३. कोरण्टक (कोरटा) ६४. ढोरसमुद्र-प्रदेशे सरस्वती पत्तन ६५. शत्रुञ्जय(पर्वत) ६६. तारापुर ६७. वर्धमानपुर (वढवाण?) ६८,६९. वटपद्र, गोगपुर ७०. पिच्छन ७१. मुङ्कारपुर ७२. मान्धातृ ७३. विक्कन ७४. चोकलपुर
शान्ति-चैत्य नेमि-चैत्यो (२)
अजित-चैत्य मल्लि-चैत्य पार्श्व-चैत्य शान्ति-चैत्य आदि-चैत्य मुनिसुव्रत-चैत्य आदि-चैत्यो (बे) चन्द्रप्रभ-चैत्य जिनगृह
नेमि-चैत्य आदि-चैत्य
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अनुसन्धान-५५
आ यादीमां घणां स्थानोनी साम्प्रत ओळख पामवी हजी बाकी रहे छे. परन्तु क्षेत्र - नामो जोतां पेथडशाहे केटकेटला प्रदेशो के राज्योमां पोतानो धर्मव्याप विकसाव्यो हशे ते जाणी शकाय छे.
तेमना बनावेलां जिनमन्दिरोनी ज फक्त आ यादी छे. ते सिवाय तेमणे पौषधशालाओ, सदाव्रतो, जैन सिवायनां देव - मन्दिरो, जलाशयो, धर्मशालाओ इत्यादिनां जे निर्माण करावेलां, तेनी यादी पण कांई नानी नथी. तेमनुं विस्तृत चरित्र वांचवाथी ज तेनो ख्याल आवी शके.
साधुश्री पृथ्वीधरकारित जिनभुवनस्तवनम् ॥ श्री पृथ्वीधरसाधुना सुविधिना दीनादिषूद्दानिना भक्तश्रीजयसिंहभूमिपतिना स्वौचित्यसत्यापिना । अर्हद्भक्तिपुषा गुरुक्रमजुषा मिथ्यामनीषामुषा सच्छीलादिपवित्रितात्मजनुषा प्रायः प्रणश्य हुषा ॥ १॥ नैकाः पोषधशालिकाः सुविपुला निर्मापयित्रा सता मन्त्र-स्तोत्रविदीर्णलिङ्गविवृतश्रीपार्श्वपूजायुजा । विद्युन्मालिसुपर्वनिर्मितलसद्देवाधिदेवाह्वयख्यातज्ञाततनूरुहप्रतिकृतिस्फूर्जत्सपर्यासृजा ॥२॥ त्रि:काले जिनराजपूजनविधिं नित्यं द्विरावश्यकं साधौ धार्मिकमात्रकेऽपि महतीं भक्तिं विरक्तिं भवे । तन्वानेन सुपर्वपौषधवता साधर्मिकाणां सदा वैयावृत्त्यविधायिना विदधता वात्सल्यमुच्चैर्मुदा ||३|| श्रीमत्सम्प्रतिपार्थिवस्य चरितं श्रीमत्कुमारक्षमापालस्याऽथ च वस्तुपालसचिवाधीशस्य पुण्याम्बुधेः । स्मार(रं) स्मारमुदारसम्मदसुधासिन्धूर्मिषून्मज्जता श्रेयःकाननसेचनस्फुरदुरुप्रावृट्भवाम्भोमुचा ॥४॥ सम्यग्न्यायसमर्जितोर्जितधनैः सुस्थानसंस्थापितैर्ये ये यत्र गिरौ तथा पुरवरे ग्रामेऽथवा यत्र ये ।
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प्रासादा नयनप्रसादजनका निर्मापिताः शर्मदास्तेषु श्रीजिननायकानभिधया सार्द्ध स्तुवे श्रद्धया ॥५॥
पञ्चभिः कुलकम् ॥ श्रीमद्विक्रमतस्त्रयोदशशतेष्वब्देष्वतीतेष्वहो ! । विंशत्यभ्यधिकेषु मण्डपगिरौ शत्रुञ्जयभ्रातरि । श्रीमानादिजिनः शिवाङ्गजजिनः श्रीउज्जयन्तायिते निम्बस्थूरनगेऽथ तत्तलभुवि श्रीपार्श्वनाथः श्रिये ॥६॥ जीयादुज्जयिनीपुरे फणिशिराः श्रीविक्रमाख्ये पुरे श्रीमान्नेमिजिनो जिनौ मुकुटिकापुर्यां च पाश्र्वादिमौ । मल्लिः शल्यहरोऽस्तु विन्धनपुरे पार्श्वस्तथाऽऽशापुरे नाभेयो बत घोषकीपुरवरे शान्तिर्जिनोऽर्यापुरे ॥७॥ श्रीधारानगरेऽथ वर्द्धनपुरे श्रीनेमिनाथः पृथक् श्रीनाभेयजिनोऽथ चन्द्रकपुरीस्थाने सजीरापुरे श्रीपाश्र्वो जलपद्र-डाहडपुरस्थानद्वये सम्पदं देयाद् वोऽरजिनश्च हंसलपुरे मान्धातृमूलेऽजितः ॥८॥ आदीशो धनमातृकाभिधपुरे श्रीमङ्गलाद्ये पुरे तुर्यस्तीर्थकरोऽथ चिक्खलपुरे श्रीपार्श्वनाथः श्रिये । श्रीवीरो जयसिंहसंज्ञितपुरे नेमिस्तु सिंहानके श्रीवामेयजिनः सलक्षणपुरे पार्श्वस्तथेन्द्रीपुरे ॥९॥ शान्त्यै शान्तिजिनोऽस्तु ताल्हणपुरेऽरो हस्तिनाद्ये पुरे श्रीपार्श्वः करहेटके नलपुरे दुर्गे च नेमीश्वरः। श्रीवीरोऽथ विहारके स च पुनः श्रीलम्बकर्णीपुरे संखोडे किल कुन्थुनाथ ऋषभः श्रीचित्रकूटाचले ॥१०॥ आद्यः पर्णविहारनामनि पुरे पार्श्वश्च डण्डानके वंक्यामादिजिनोऽथ नीलकपुरे जीयाद् द्वितीयोः जिनः । आद्यो नागपुरेऽथ मध्यकपुरे श्रीअश्वसेनात्मजः । श्रीदर्भावतिकापुरेऽष्टमजिनो नागद्रहे श्रीनमिः ॥११॥
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________________ 2 अनुसन्धान-५५ श्रीमल्लिर्धवलक्कनामनगरे श्रीजीर्णदुर्गान्तरे श्रीसोमेश्वरपत्तने च फणभृल्लक्ष्मा जिनो नन्दतात् // विंशः शङ्खपुरे जिनः सचरमः सौवर्त्तके वामनस्थल्यां नेमिजिनः शशिप्रभजिनो नासिक्यनाम्न्यां पुरि // 12 // श्रीसोपारपुरेऽथ रूणनगरे घोरंगलेऽथ प्रतिष्ठाने पार्श्वजिनः शिवात्मजजिनः श्रीसेतुबन्धे श्रिये / श्रीवीरो वठपद्र-नागलपुरे ष्टक्कारकायां तथा श्रीजालन्धर-देवपालपुरयोः श्रीदेवपूर्वे गिरौ // 13 // चारूपे मृगलाञ्छनो जिनपतिर्नेमिः श्रये द्रोणते नेमी रत्नपुरेऽजितोऽर्बुकपुरे मल्लिश्च कोरण्टके पावॉ ढोरसमुद्रनीवृति सरस्वत्याह्वये पत्तने कोटाकोटिजिनेन्द्रमण्डपयुते शान्तिश्च शत्रुञ्जये // 14 // श्रीतारापुर-वर्द्धमानपुरयोः श्रीनाभिभू-सुव्रतौ नाभेयो जिन(?) वटपद्र-गोगपुरयोः श्रीनाभि(?)श्चन्द्रप्रभः पिच्छने / मुकारेऽद्भुततोरणं जिनगृहं मान्धातरि त्रिक्षदां (?) नेमिविक्कननाम्नि चोलकपुरे श्रीनाभिभूर्भूतये // 15 // इत्थं पृथ्वीधरेण प्रतिगिरि-नगर-ग्राम-सीमं जिनानामुच्चैश्चैत्येषु विष्वग् हिमगिरिशिखरैः स्पर्द्धमानेषु यानि / बिम्बानि स्थापितानि क्षितियुवतिशिरःशेखराण्येष वन्दे तान्यप्यन्यानि यानि त्रिदश-नरवरैः कारिताकारितानि // 16 / / श्रीपृथ्वीधरकारितजिनभुवनस्तवनम् //