Book Title: Sadhna Sahitya aur Itihas ke Kshetra me Vishishta Yogdan Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 4
________________ • १७२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व गई। उसे भोपालगढ़ से जोधपुर लाया गया तब यह त्रिपोलिया में विजयमलजी कुम्भट के प्रेस में छपती थी और मैं इसका प्रबन्ध सम्पादक था। बाद में तो 'जिनवाणी' का सम्पादन डॉ० नरेन्द्र भानावत के सक्षम हाथों में जयपुर से होने लगा और इसने ऐसी प्रगति की कि आज यह जैन समाज में 'कल्याण' की तरह प्रतिष्ठित है । इसके 'कर्मसिद्धान्त' विशेषांक, 'अपरिग्रह' विशेषांक, 'जैन संस्कृति और राजस्थान' विशेषांक और अभी का 'श्रद्धांजलि विशेषांक' साहित्य जगत् में समादृत हैं । आज जिनवाणी' के हजारों आजीवन सदस्य बन चुके हैं देश में ही नहीं विदेश में भी। भारत के सभी विश्वविद्यालयों में यह पहुँचती है। गुरुदेव स्वयं जन्मजात साहित्यकार और कवि थे। उन्होंने 'उत्तराध्ययन' सूत्र का प्राकृत भाषा से सीधा हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद किया है जो उनके कवि और साहित्यकार होने का बेजोड़ नमूना है । 'प्रश्नव्याकरण' सूत्र पर उन्होंने हिन्दी में टीका लिखी है। वे प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी और गुजराती भाषाओं के विद्वान् थे। उनके व्याख्यान भी बहुत साहित्यिक होते थे। इसका प्रमाण 'गजेन्द्र व्याख्यान माला' के सात भाग हैं । उन्होंने कई पद्य हिन्दी में लिखे हैं जो बहुत प्रसिद्ध हैं और अक्सर प्रार्थना सभा में गाये जाते हैं। इतना ही नहीं कि वे स्वयं साहित्यकार थे बल्कि उन्होंने सदैव कई लोगों को लिखने की प्रेरणा दी है। श्री रणजीतसिंह कूमट, डॉ० नरेन्द्र भानावत, श्री कन्हैयालाल लोढ़ा, श्री रतनलाल बाफना आदि कई व्यक्तियों ने अपनी 'श्रद्धांजलि' में यह स्वीकार किया है कि आचार्यश्री की प्रेरणा से ही उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया था। स्वयं मुझे भी गुजराती से हिन्दी अनुवाद की ओर लेखन की प्रेरणा पूज्य गुरुदेव से ही प्राप्त हुई । उन्हीं की महती कृपा से मैं 'उपमिति भव प्रपंच कथा' जैसे महान् ग्रन्थ का अनुवाद करने में सफल हुआ। जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी के दो-दो वारन्ट निकले हुए हों उसे वैरागी के रूप में प्राश्रय देकर उसे प्राकृत, संस्कृत, जैन धर्म और दर्शन का अध्ययन करवाना और लेखन की प्रेरणा देना गुरुदेव के साहित्य-प्रेम को स्पष्ट करता है । आचार्यश्री की कृपा से मुझे पं. दुःख मोचन जी झा से भी प्राकृत सीखने में काफी सहायता मिली किन्तु बाद में तो पंडित पूर्णचन्दजी दक जैसे विद्वान् के पास स्थायी रूप से रखकर जैन सिद्धान्त विशारद और संस्कृत विशारद तक की परीक्षाएँ दिलवाने की सारी व्यवस्था पूज्य गुरुदेव की कृपा से ही हुई । मात्र मुझे ही नहीं उन्होंने अपने जीवन में इसी प्रकार कई लोगों को लिखने की प्रेरणा दी थी। ऐसे थे साहित्य-प्रेमी हमारे पूज्य गुरुदेव ! साहित्यकारों को अपने साहित्य के प्रकाशन में बड़ी कठिनाई होती है। इसलिए आचार्यश्री की प्रेरणा से जयपुर में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल की Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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