Book Title: Sadhna Sahitya aur Itihas ke Kshetra me Vishishta Yogdan Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 5
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. • १७३ स्थापना हुई जिससे 'जिनवारणी' के साथ-साथ आध्यात्मिक सत्साहित्य प्रकाशित होता है। जैन विद्वानों का कोई संगठन नहीं होने से विद्वान् प्रकाश में नहीं पा रहे थे और उनकी विचारधारा से जन-साधारण को लाभ प्राप्त नहीं हो रहा था। अतः प्राचार्य प्रवर की प्रेरणा से जयपुर में डॉ० नरेन्द्र भानावत के सुयोग्य हाथों में अखिल भारतीय जैन बिद्वत् परिषद् की स्थापना की गई जिसकी वर्ष में कम से कम एक विद्वत् संगोष्ठी अवश्य होती है। इससे कई जैन विद्वान् प्रकाश में आये हैं और ट्रैक्ट योजना के अन्तर्गत १०१ रुपये में १०८ पुस्तकें दी जाती हैं। इस योजना में अब तक ८३ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इसके अतिरिक्त स्वाध्यायियों को विशेष प्रशिक्षण घर बैठे देने के लिये प्राचार्यश्री की प्रेरणा से 'स्वाध्याय शिक्षा' द्वैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है जिसमें प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी विभाग हैं। इस पत्रिका में प्राकृत और संस्कृत पर अधिक बल दिया जाता है और प्रत्येक अंक में प्राकृत भाषा सीखने के नियमित पाठ प्रकाशित होते हैं। गुरुदेव की प्रेरणा से अखिल भारतीय महावीर जैन श्राविका संघ की भी स्थापना हुई और महिलाओं में ज्ञान का विशेष प्रकाश फैलाने के लिए 'वीर उपासिका' पत्रिका का प्रकाशन मद्रास से प्रारम्भ हुआ जिसमें अधिकांश लेख मात्र महिलाओं के लिए ही होते थे। अाज के विद्यार्थी ही भविष्य में साहित्यकार और विद्वान बनेंगे अतः विद्यार्थियों के शिक्षा को उचित व्यवस्था होनी चाहिये । इसी उद्देश्य से भोपालगढ़ में जैन रत्न उच्च माध्यमिक विद्यालय और छात्रावास की स्थापना की गई जिससे निकले हुए छात्र प्राज देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं। इस विद्यालय के परीक्षाफल सदैव बहुत अच्छे रहे हैं। इतिहास का क्षेत्र : इतिहास लिखने का कार्य सबसे टेढ़ा है क्योंकि इसमें तथ्यों की खोज करनी पड़ती है और प्रत्येक घटना को सप्रमारण प्रस्तुत करना होता है । फिर एक संत के लिए तो यह कार्य और भी कठिन है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों और शिलालेख आदि को ढूंढ़ने के लिए प्राचीन मंदिरों, गुफाओं, ग्रन्थ भंडारों आदि की खाक छाननी पड़ती है जो एक सन्त के लिए इसलिए कठिन है कि वह वाहन का उपयोग नहीं कर सकता। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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