Book Title: Sadhna Sahitya aur Itihas ke Kshetra me Vishishta Yogdan
Author(s): Lalchand Jain
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ AD साधना, साहित्य और इतिहास नाना के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान dyto 0 श्री लालचन्द जैन साधना का क्षेत्र : जैन साधु-साध्वियों की दिनोंदिन हो रही कमी और भारत जैसे विशाल क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रही जैनियों की संख्या के लिये जैन धर्मदर्शन का प्रचार-प्रसार पूरा न हो सकने के कारण आचार्य प्रवर ने सोचा कि साधु-साध्वियों और गृहस्थों के बीच एक ऐसी शांति सेना को तैयार करना चाहिये जो प्रचारकों के रूप में देश के कोने-कोने में जाकर जैन धर्म-दर्शन का प्रचार-प्रसार कर सके । जब प्राचार्यश्री का चातुर्मास उज्जैन में था (लगभग सन् १९४३ का वर्ष) तब धार से एक श्रावक ने आकर कहा कि हमारे यहाँ कोई साधु-साध्वी नहीं है। यदि आप किसी को पर्युषण में व्याख्यान देने भेज सकें तो बड़ी कृपा होगी। उस समय मैं आचार्यश्री के पास रहकर जैन धर्म और प्राकृत भाषा का अध्ययन कर रहा था । आचार्यश्री ने मुझे आज्ञा दी कि मैं धार नगरी में जाकर पर्युषण करवाऊँ । यद्यपि मैं नया-नया था तथापि प्राचार्य श्री की आज्ञा को शिरोधार्य कर मैं गया और वहाँ पर्युषण की आराधना आचार्य श्री की कृपा से बहुत ही शानदार हुई । वहाँ के श्रावकजी ने वापस आकर आचार्य श्री को पर्युषण की जो रिपोर्ट दी उससे आचार्यश्री का स्वाध्याय संघ की प्रवृत्ति चलाने का विचार दृढ़ हो गया और दूसरे ही वर्ष भोपालगढ़ में स्वाध्याय संघ का प्रारम्भ हो गया। आज तो देश के कोने-कोने में स्वाध्याय संघ की शाखाएँ खुल चुकी हैं। सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल जयपुर के तत्त्वावधान में जैन स्थानकवासी स्वाध्याय संघ का मुख्य कार्यालय जोधपुर में कार्य कर रहा है । अनेक स्वाध्यायी भाईबहिन देश के कोने-कोने में जाकर साधु-साध्वी रहित क्षेत्रों में पर्युषण की आराधना करवाते हैं । जब आचार्यश्री का चातुर्मास इन्दौर और जलगाँव में था तब इन्दौर में मध्यप्रदेश स्वाध्याय संघ की तथा जलगाँव में महाराष्ट्र स्वाध्याय संघ की स्थापना हुई । उसके बाद तो जैसे-जैसे आचार्य प्रबर का विहार होता गया, वैसे-वैसे उन-उन राज्यों में स्वाध्याय संघ की शाखाएँ खुलती गईं। आज तो कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे दूरदराज के राज्यों में भी स्वाध्याय संघ की शाखाएँ हैं । साधना के क्षेत्र में स्वाध्याय को घर-घर में प्रचारित करने को आचार्यश्री की बहुत बड़ी देन है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6