Book Title: Sadhna Sahitya aur Itihas ke Kshetra me Vishishta Yogdan Author(s): Lalchand Jain Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 2
________________ • १७० आचार्यश्री के पास जब भी कोई दर्शन करने आता तो प्राचार्यश्री का पहला प्रश्न होता " कोई धार्मिक पुस्तक पढ़ते हो ? कुछ स्वाध्याय करते हो ?" यदि दर्शनार्थी का उत्तर नहीं में होता तो उसे कम से कम १५ मिनिट स्वाध्याय का नियम अवश्य दिला देते । • स्वाध्याय एक ऐसा प्रांतरिक तप है जिसकी समानता अन्य तप नहीं कर सकते । 'उत्तराध्ययन सूत्र' में महावीर ने फरमाया है- 'सज्झाएणं समं तवो नावि प्रत्थि नावि होई ।' स्वाध्याय के समान तप न कोई है न कोई होगा । 'सज्झाए वा निउत्तेणं, सव्व दुवख विमोक्खणे ।' स्वाध्याय से सर्व दुःखों से मुक्ति होती है । 'बहु भवे संचियं खलु सम्झाएण खवेई ।' बहु संचित कठोर कर्म भी स्वाध्याय से क्षय हो जाते हैं । भूतकाल में जो अनेक दृढ़धर्मी, प्रियधर्मी, आगमज्ञ श्रावक हुए हैं, वे सब स्वाध्याय के बल पर ही हुए हैं और भविष्य में भी यदि जैन धर्म को जीवित धर्म के रूप में चालू रखना है तो वह स्वाध्याय के बल पर ही रह सकेगा । आज प्राचार्यश्री की कृपा से स्वाध्यायियों की शांति सेना इस कार्य का अंजाम देशभर में दे रही है । व्यक्तित्व एवं कृतित्व आचार्यश्री ने देखा कि लोग सामायिक तो वर्षों से करते हैं किन्तु उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं होता। जीवन में समभाव नहीं आता, राग-द्व ेष नहीं छूटता, क्रोध नहीं छूटता, लोभ नहीं छूटता, विषय-कषाय नहीं छूटता । इसका कारण यह है कि लोग मात्र द्रव्य सामायिक करते हैं । सामायिक का वेष पहनकर, उपकरण लेकर एक स्थान पर बैठ जाते हैं और इधर-उधर की बातों सामायिक का काल पूरा कर देते हैं । अतः जीवन में परिवर्तन लाने के लिए आपने भाव सामायिक का उपदेश दिया । आप स्वयं तो भाव सामायिक की साधना कर ही रहे थे । आपका तो एक क्षण भी स्वाध्याय, ध्यान, मौन, लेखन आदि के अतिरिक्त नहीं बीतता था । अतः आपके उपदेश का लोगों पर भारी प्रभाव पड़ा । आपने सामायिक लेने के 'तस्स उत्तरी' के पाठ के अन्तिम शब्दों पर जोर दिया । सामायिक 'ठाणेणं, मोणेणं, भाणेणं' अर्थात् एक ग्रासन से, मौन पूर्वक और ध्यानपूर्वक होनी चाहिये । यदि इस प्रकार भावपूर्वक सामायिक की जाय, सामायिक में मौन रखें, स्वाध्याय करें और आत्मा का ध्यान करें तो धीरेधीरे अभ्यास करते-करते जीवन में समभाव की प्राय होगी, जिससे जीवन परिवर्तित होगा । इस प्रकार आपने भाव सामायिक पर अधिक बल दिया । आपके पास जो कोई प्राता, उससे आप पूछते कि वह सामायिक करता है या नहीं ? यदि नहीं करता तो उसे नित्य एक सामायिक या नित्य न हो सके तो कम से कम सप्ताह में एक सामायिक करने का नियम अवश्य दिलवाते । . आज तो आचार्यश्री की कृपा से ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, में सामायिक संघ की स्थापना हो चुकी है और जयपुर में अखिल भारतीय सामायिक संघ का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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