Book Title: Sadguru ke Prati Samarpan Author(s): Hirachandra Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 4
________________ 22 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 | करें। अगर आपने शुद्ध सामायिक की और आप आराधक हैं तो मानकर चलिये-एक सामायिक नरक में नहीं जाने देगी। मैं सामायिक की कीमत नहीं बता रहा हूँ, न प्रभावना बाँट रहा हूँ। आज लोग सामायिक को, जाप को, प्रतिक्रमण को खरीदना चाहते हैं। पूनिया की एक सामायिक लेने के लिए भगवान ने श्रेणिक से कहा- तेरे राज्य की जितनी सम्पदा है, वह दलाली में जाती है। आप प्रभावना में पाँच रुपये का नोट देकर क्या पाना चाहते हैं? हमारा काम धर्म का मार्ग प्रशस्त करना है। आप वीतराग वाणी को बूंद-बूंद ही सही, आचरण में लायें। वीतराग वाणी को आचरण में लाने वाला ही अपना जीवन उन्नत बनाता है। गुरु का जीवन में यही महत्त्व है । गुरु प्रेरणा करता है, गुरु घड़ता है। घड़ने वाले और भी कई हो सकते हैं, लेकिन गुरु जैसा घड़ने वाला दूसरा नहीं हो सकता । गुरु के प्रति श्रद्धा रखकर जीवन में आचरण करने वाला सुख प्राप्त करता है । गुरुदेव पूज्य आचार्य हस्ती अपने भजन में यही सीख दे रहे हैं घणो सुख पावेला, जो गुरु वचनों पर प्रीति बढ़ावेला, वचन प्रमाणे जो नर चाले, चिंता दूर भगावेला। आप मति आरति भोगे नित, धोखा खावेला।। एकलव्य लखि चकित पांडुसुत, मन में सोच करावेला। कहा गुरु से हाल भील भी, भक्ति बतलावेला।। देश भक्ति उस भील यवा की. वनदेवी खश होवेला। बिना अंगूठे बाण चले यों, बर दे जावेला।। गुरु कारीगर के सम जग में, वचन जो खावेला। पत्थर से प्रतिमा जिम वो नर, महिमा पावेला।। कृपा दृष्टि गुरुदेव की मुझ पर, ज्ञान शांति बरसावेला । 'गजेन्द्र गुरु महिमा का नहिं कोई, पार मिलावेला ।। पाँच पदों की वन्दना में कई लोग घड़ने वालों की महिमा गाते हैं- गुरु को कई तरह की उपमाओं से उपमित किया जाता है। वह चाहे कारीगर हो, सुनार हो, दर्जी हो, माली हो इस तरह की कई उपमा देकर गुरु की महिमा गाई जाती है। किन्तु कारीगर, सुनार, दर्जी, माली ये तो आकृतियाँ घड़ने वाले हैं। ये अजीव को घड़ते हैं। दर्जी कुर्ते की कटिंग करता है। वह कपड़े को कैंची से कांट-छांट कर तैयार करता है। कुम्हार मिट्टी को चाक पर चढ़ाकर जैसी चाहे वैसी आकृति घड़ता है । दर्जी हो, कुम्हार हो ये सब अजीव को घड़ते हैं। अजीव को घड़ना सरल है। अजीव कुछ बोलता नहीं, लेकिन चेतन को घड़ना सरल नहीं है। मांडने मांडना सरल है, चित्रकारी करना सरल है, किन्तु छोरे (लड़के) को समझाना सरल नहीं है। गुरु जड़ को नहीं, चेतन को घड़ते हैं। चेतन में जो भी अवगुण हैं उन्हें हटा कर, चेतन की चंचलता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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