Book Title: Sadguru ke Prati Samarpan Author(s): Hirachandra Acharya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 3
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 21 के बीच है, उसे चिंता नहीं। वहाँ लड़ने वाले भी हैं, खतरा भी है तब भी बच्चे को चिंता नहीं। क्योंकि वह पिता पकड़ कर चल रहा है। क्या आपको भी अंगुली पकड़ने जैसा विश्वास है ? गुरु आत्मकल्याण के लिए रास्ता बताता है। आप गुरु को भगवान कह दीजिये । तीर्थंकर भी गुरु ही होते हैं। आज तीर्थंकरों का साक्षात् संयोग नहीं, पर उनकी वाणी का आधार आज भी है। गुरु भी वीतराग भगवन्तों की वाणी का आधार लेकर आपका मार्गदर्शन करते हैं। आपकी गुरु के प्रति श्रद्धा होगी, समर्पण होगा तो आप तिर सकेंगे। ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की साधना में आगे बढ़ सकेंगे। सच्चा गुरु वह है जो अपने से नहीं व्यक्ति को धर्म से जोड़ता है। भक्त का समर्पण गुरु के प्रति भले ही हो, किन्तु गुरु उसे सही मार्ग बताता है, उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर ले जाता है। जो व्यक्ति से जुड़ता है वह व्यक्ति के न रहने पर भटक भी सकता है, किन्तु जो धर्म से जुड़ता है उसका जीवन कल्याणपथ पर अग्रसर हो है। अतः गुरु निष्काम होकर श्रद्धालु भक्त अथवा शिष्य को हितभाव से धर्म में जोड़ता है। उसे शाश्वत दुःखमुक्ति का मार्ग दिखाता है एवं स्वयं निर्लिप्त रहता है । धर्म क्या है? इसे समझना है। धर्म में पहला स्थान है, ज्ञान का - “पढमं नाणं तओ दया । " ज्ञान आवश्यक है। ज्ञान नहीं तो क्रिया अंधी है। आपने देखा होगा - घाणी का बैल दिनभर चलता है, पर है कहाँ ? वहीं का वहीं। घाणी का बैल आगे नहीं बढ़ता। इसी तरह जब तक ज्ञान नहीं, आप चाहे जितनी क्रिया कर लीजिये, तपाराधन कर लीजिये, वह उतना फलदायी नहीं होगा। लोग हैं जो महाराज के कहने से सामायिक कर लेते हैं, उपवास-आयंबिल - एकाशन कर लेते हैं। उनसे पूछा जाय- सामायिक क्या कैसे की जाती है तो ....? शाम को सैकड़ों प्रतिक्रमण करते हैं, उनसे पूछा जाय कि प्रतिक्रमण क्या .? तो क्या केवल 'मिच्छामि दुक्कड' कहने मात्र से प्रतिक्रमण हो गया ? आप कोई भी क्रिया करें पहले ज्ञान प्राप्त करें। सामायिक क्या, उसकी विधि क्या, इसकी जानकारी प्राप्त हो। आज कई वयोवृद्ध श्रावक मिल जायेंगे जो वर्षों से सामायिक कर रहे हैं, पर सामायिक क्या है शायद नहीं जानते । आप व्यापार करते हैं। क्या व्यापार बिना जानकारी किए करते हैं? आज जो सामायिक करते हैं अधिकांश ऐसे हैं जो या तो महाराज के कहने से करते हैं या धर्मपत्नी ने कह दिया इसलिये करते हैं। जो कहने से कर रहे हैं, उसे भी मैं गलत नहीं कह रहा, पर कैसे करनी चाहिये, उसका ज्ञान कीजिये। गुरु के प्रति समर्पण हो तो सब कुछ किया जा सकता है। एकलव्य ने तीर चलाने का एकमात्र उपयोगी साधन अंगूठा भी गुरु को समर्पित कर दिया। हम कभी सामायिक के लिए एक घंटा माँगते हैं, वह भी कइयों को भारी लगता है। आप व्यापार-धंधे में, आमोद-प्रमोद में, मिलने-जुलने में घंटों पूरे कर देते हैं, वहाँ समय निकालना भारी नहीं लगता । मैं आपसे फिर कहूँ- आपमें से जो सामायिक नहीं कर रहे हैं वे करना शुरू करें और जो कर रहे हैं वे विधि का ज्ञान प्राप्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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