Book Title: Sadguru ke Prati Samarpan
Author(s): Hirachandra Acharya
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 2
________________ 20 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 || महाराज की बात कहें, शासनप्रभावक धर्मसिंह जी महाराज की बात कहें इन्होंने दीर्घकाल तक खोज की, फिर भी सद्गुरु का समागम नहीं हुआ। किसी परम्परा में सुनते हैं कि गुरु की खोज के लिए पर्वतों एवं जंगलों में कितना प्रयास करना पड़ता, तब जाकर गुरु मिलते। दृष्टान्त सुना है। साक्षात् गुरु द्रोण जो कलाचार्य थे, ने यह कहकर शिष्य को ठुकरा दिया कि मैं राजकुमार को, कुलीन और श्रेष्ठी पुत्रों को शिक्षा प्रदान करता हूँ। हीन कुल और हीन जाति वालों को मैं शिक्षा नहीं देता। गुरु ने ठुकरा दिया, पर शिष्य का समर्पण था। शिष्य ने गुरु की प्रतिमा बनाई और मूर्ति के सामने कला सीखनी प्रारम्भ की। आप जानते हैं गुरुभक्त एकलव्य ने अर्जुन की विद्या को भी पीछे छोड़ दिया। एकलव्य एकदृष्टि लगाकर विद्याध्ययन करते-करते शब्दभेदी बाण चलाने की कला सीख गया। कारण था उसका समर्पण। आप अपने रोग-निकन्दन के लिए चिकित्सक के पास जाते हैं। वह दवा लिखता है, पथ्य-परहेज भी. बताता है। किन्तु आप चिकित्सक की दवा बिना तर्क किए ले लेते हैं। आप नहीं पूछते कि यह कौनसा इंजेक्शन है, यह कैसी गोली है। कोई बहस नहीं, कोई तर्क नहीं, कोई शंका नहीं। जो दवा दी जा रही है उसे ग्रहण कर रहे हैं। डॉक्टर जैसा कहता है, वैसा करते हैं। . डॉक्टर पर इतना विश्वास है, क्या सद्गुरु पर भी इतना विश्वास है? अगर गुरु सामायिक करने का कहें तो जिन्हें गुरु पर विश्वास है तो आज्ञा का पालन कर लेंगे, किन्तु? कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो सामायिक क्या है? सामायिक क्यों की जाती है? सामायिक कैसे की जाती है? 48 मिनट बैठना क्यों जरूरी है? सामायिक से क्या होता है? सामायिक करने से क्या फल मिलेगा? इस प्रकार के न जाने कितने तर्क करेंगे। इन तर्कों का समाधान भी धर्मगुरु धैर्य के साथ करते हैं। वे इन प्रश्नों का स्वागत कर समाधान देते हैं। गुरुमंत्र क्या है? वह किसलिए करवाया जाता है? गुरु आपकी परिस्थितियों का, प्रकृति का, पुरुषार्थ का जानकार होता है। प्रदेशी राजा का कोई गुरु नहीं था। गुरु नहीं था तब तक आत्मा को और शरीर को एक मानकर चलता था। उसके लिए उसने न जाने कितनी हिंसाएँ की होंगी, कितने परीक्षण किए होंगे, हिसाब नहीं। कई जीवों की बोटी उतार दी, मानव को पेटियों में बंद कर दिया, जीवित था तब कितने वजन का था और मरने के बाद कितना वजन रहा, जैसे उसने कई परीक्षण किए। लेकिन जब उसने समझ लिया कि जीव अलग है, शरीर अलग है तो तर्क छोड़ दिया। श्रद्धा एवं समर्पण आने पर तर्क छूट जाता है। अब तक जो हिंसा करता था, पापाचरण करता था, जानवर को काटते विचार तक नहीं करता था, वही प्रदेशी बारह व्रती बन गया। कब? जब श्रद्धा जागृत हो गई। ____ मैं मात्र एक बात कह रहा हूँ- आप श्रद्धा के साथ गुरु को स्वीकार कर लीजिये। फिर आप चाहे जंगल में हैं, वन में हैं, चाहे किसी संकट में हैं, किसी भी परिस्थिति में हैं, आपको भय नहीं लगेगा। आपने देखा होगा- छोटा बच्चा जब बाहर जाता है, पिता की अंगुलि पकड़ कर चलता है। वह हजारों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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