Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 18
________________ RAKASAMAKAAR अणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि ॥ ४५ ॥ १०८॥ उडमहे तिरियंमिवि मयाणि जीवेण यालमरणाणि । दसणनाणसहगओ पंडिअमरणं अणुमरिस्सं ॥४६॥१०॥ उच्चैयणयं जाई मरणं नरएसु वेयणाओ य । एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इहि । ४७॥११०॥ जइ उप्पजह दुक्खं तो दहचो सहावओ नवरं । किं किं मए न पत्तं संसारे संसरंतेणं ? ॥ ४८ ॥ १११ ।। संसारचक्कवालंमि सधेऽविय पुग्गला मए डू बहुसो । आहारिया य परिणामिया य नाहं गओ तित्तिं ॥४९॥११२ ॥ तणकट्ठेहि व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं । न इमो जीवो सको तिप्पेठं कामभोगेहिं ॥५०॥ ११३ ॥ आहारनिमित्तेणं मच्छा गच्छंति सत्तमि पुढविं । सचित्तो आहारो न खमो मणसावि पत्थेउं ॥ ५१ ॥११४ ॥ पुर्वि कयपरिकम्मो अनियाणो ऊहिऊण महबुद्धी । पच्छा मलियकसाओ सजो मरणं पडिच्छामि ॥५२॥ ११५ ॥ अकंडेऽचिर(एतानि) नन्ममरणानुबन्धीनि ॥ ४५ ॥ ऊर्द्धमधस्तिरयपि मृतानि जीवेन बालमरणानि । दर्शनज्ञानसहगतः पण्डितमरणमनुमरिष्ये ॥४६॥ उद्वेजनकं जातिमरणं नरकेषु वेदनाश्च । एतानि स्मरन् पण्डितमरणं म्रियस्वेदानीम् ।। ४७ ।। यदि उत्पद्यते दुःखं तर्हि द्रष्टव्यः स्वभावः परम् । किं किं मया न प्राप्तं संसारे संसरता ॥ ४८ ॥ संसारचक्रबाले सर्वेऽपि च पुद्गला मया बहुशः। आहारिताश्च परिणामिताश्च न चाहं गतस्तृप्तिम् ॥ ४९ ॥ तृणकाष्ठेरनिरिव नदीसहस्रैर्लवणोद इव । नायं जीवः कामभोगैस्तर्पितुं शक्यः ।। ५०॥ आहारनि| मित्तेन मत्स्या गच्छन्ति सप्तमी पृथिवीम् । सचित्त आहारो न क्षमो मनसाऽपि प्रार्थयितुम् ॥ ५१ ॥ पूर्व कृतपरिकर्मा अनिदान ऊहित्वा मतिबुद्धी । पश्चात् मर्दितकषायः सद्यो मरणं प्रतीच्छामि ॥ ५२ ॥ अकाण्डेऽचिरभावितास्ते पुरुषाः कृतपूर्वकर्मपरिभावनया पश्चात् Educa tion For Personal Private Une Oy

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