Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 16
________________ ACAUG NASAAMASSACROR हामि य जं च मे गरहणिजं । आलोएमि य सघं सम्भितरबाहिर उवहिं ।। ३१ ॥ ९४ ॥ जह बालो जंपतो कजमकजं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोइज्जा मायामोसं (मायामद) पमुत्तूणं ॥ ३२ ॥ ९५॥ नाणंमि दसणंमि य तवे चरित्ते य चउमुवि अकंपो । धीरो आगमकुसलो अपरिस्सावी रहस्साणं ॥ ३३ ॥ ९६ ॥ रागेण व दोसेण व जंभे अकयन्नुया पमाएणं । जो मे किंचिवि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ॥ ३४ ॥ ॥९७ ॥ तिविहं भणंति मरणं यालाणं बालपंडियाणं च । तइयं पंडितमरणं जं केवलिणो अणुमरंति ॥३५॥ ६॥९८॥ जे पुण अट्ठमईया पयलियसन्ना य वंकभावा य । असमाहिणा मरंति न हु ते आराहगा भणिया है॥३६ ॥ ९९ ॥ मरणे विराहिए देवदुग्गई दुल्लहा य किर घोही । संसारो य अणंतो होइ पुणो आगमिस्साणंद ॥ ३७॥१०॥ का देवदुग्गई का अयोहि केणेव वुज्झई मरणं । केण अणंतमपारं संसारे हिंडई जीवो UST मभ्यन्तरं बाह्यमुपधिम् ॥३१॥ यथा बालो जल्पन कार्यमकार्य च ऋजुकं भणति। तथा तदालोचयेत् मायामृषा(मायामदौ)प्रमुच्य ॥३२॥ ज्ञाने दर्शने च तपसि चारित्रे च चतुर्वप्यकम्पः । धीर आगमकुशलोऽपरिश्रावी रहस्यानाम् ॥ ३३ ॥ रागेण वा द्वेषेण वा या भवतामकृतज्ञता प्रमादेन । यन्मया किञ्चिदपि भणितं तदहं त्रिविधेन क्षाम्यामि ॥ ३४ ॥ त्रिविधं भणन्ति मरणं बालानां बालपण्डितानां च । तृतीयं पण्डितमरणं यत्केवलिनोऽनुम्रियन्ते ॥ ३५॥ ये पुनरष्टमदिकाः प्रचलितबुद्धयो वक्रभावाश्च । असमाधिना म्रियन्ते नैव ते आराधका भणिताः॥३६।। मरणे विराद्ध देवदुर्गतिः दुर्लभश्च किल बोधिः। संसारश्चानन्तो भवति पुनरागमिष्यति ॥३७॥ का देवदुर्गतिः ? For Personal Private Use Only

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