Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti,
Publisher: Agamoday Samiti
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आलोचनादि
२आतुरप्र- ६॥ ३८ ॥ १०१ ।। कंदप्पदेवकिब्धिसअभिओगा आसुरी य संमोहा। ता देवदुग्गईओ मरणंमि विराहिए हुंति त्याख्याने ॥ ३९॥ १०२॥ मिच्छ इंसणरत्ता सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा तसिं दुलहा भये
चोही॥ ४० ॥ १०३ ॥ सम्मईसणरत्ता अनियाणा सुकलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा तेसिं सुलहा भवे ॥८॥
योही॥४१॥ १०४ ॥ जे पुण गुरुपहिणीया बहुमोहा ससबला कुसीला य। असमाहिणा मरंति ते हंति अणंतसंसारी ॥ ४२ ॥ १०५ ॥ जिणवयणे अणुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं । असपल असंकिलिहा ते इंति परित्तसंसारी ॥ ४३ ॥ १०६॥ बालमरणाणि बहुसो पहुयाणि अकामगाणि मरणाणि । मरिहंति ते वराया जे जिणवयणं न याणंति ॥ ४४ ॥ १०७॥ सत्यग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य ।
कोऽबोधिः? केनैवोह्यते मरणम् ? । केनानन्तमपारं संसारं हिण्डति जीवः ? ॥ ३८ ॥ कन्दर्पदेवकिल्विषामियोग्यासुरीसंमोहाः । | ताः देख्दुर्गतयो मरणे विराद्धे भवन्ति ॥ ३९ ॥ मिध्यादर्शनरताः सनिदानाः कृष्णलेश्यामवगाढाः । इह ये म्रियन्ते जीवास्तेषां
दुर्लभो मवेद्बोधिः ॥ ४०॥ सम्यग्दर्शनरक्ता अनिदानाः शुक्ललेश्यामवगाढाः । इह ये म्रियन्ते जीवास्तेषां सुलभो भवेद्बोधिः॥४१॥ |ये पुनर्गुरुप्रत्यनीका बहुमोहाः सशबलाः कुशीलाश्च । असमाधिना म्रियन्ते ते भवन्त्यनन्तसंसारिणः ॥४२॥ जिनवचनेऽनुरक्ता गुरुवचनं |ये कुर्वन्ति भावेन । अशबला असलिष्टास्ते भवन्ति परीत्तसंसारिणः ॥ ४३ ॥ बालमरणानि बहुशो बहुकानि च अकामानि मरणानि । नियन्ते ते वराका ये जिनवचनं न जानन्ति ॥४४॥ शस्त्रप्रहणं विषभक्षणं च ज्वलनश्च जलप्रवेशश्च । अनाचारभाण्डसेवी(वा)।
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