Book Title: Rushimandal Vrutti Purvarddha
Author(s): Shubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 444
________________ पांव चरित्र. ( ४३५ ) हवे उत्तम पराक्रमथी प्रसिद्ध एवा ते पांचे पांवो श्रा प्रमाणे वनवा समां छ वर्ष पूरा करीने पढी न्यायलक्ष्मीश्री शोभता एवा तेन फरी सुखे निवास करवा माटे दैतवनमां गया. अहिं हस्तिनापुरमां दुर्योधने पांवो दैतवतमां श्रव्यानी वात सांगली; तेथी तेणे वेगवमे बहु सैन्यथी त्यां श्रावी द्वैत वनना सरोवरने तीरे पकाव करचो. जो के चित्रांगद विद्याधरे या वखते त्यां श्रावी तेने बहु ना पानी तो पा सेवक समूहथी अनुसरायेला दुर्योधने सहसा ते सरोवरमा प्रवेश करचो. पी कोप पामेला ते विद्याधरे अनुचरो सहित दुर्योधननुं दरण करयुं. प्र वातनी दुर्योधनादिकनी स्त्रीयोने खबर पमी; तेथी तेन तुरत युधिष्ठिरनी पाले आवीके बहु रुदन करती बती कदेवा लागी. “हे जेव ? जो के धृतराष्ट्रना पुत्रोए तमारे विषे बहु अपराध करचो बे, तोपण तमे ज्येष्ट धर्मना उद्भवी अने विशेषे वृद्धि पामेला नावधी श्रमारा उपर क्रपा करो.” "तेजनां भावां वचन सांगली दयाथी निंजाई गयेला चित्तवाला अनेत्यजी दीधो वे क्रोध जेणे एवा युधिष्ठिरे युद्ध कार्यमां समर्थ एवा अर्जुनने ते दुर्योधनने बोमाववाना काममां आज्ञा करी.पी अर्जुने विद्याधरनी पासे जश्ने इग्बी यु.नी याचना करी. विद्याधर पण क्रोधथी रातां नेत्रवालो थयो तो बीजा अनेक विद्याधरोनी साथे त्यां रणभूमिमां आव्यो. अर्जुने पण क्रोधथी मेघनी पेठे गर्जना करीने बा - सोनो एवो वरसाद वरसाव्यो के, जेथी रातां नेत्रवालो चित्रांगद बीजा धनेक विद्याधरो सहित अर्जुननी साथे युद्ध करवा लाग्यो. पटी नाश पाम्युं वे बल जेनुं एवा ते विद्याधरे असमर्थपणाने लीचे उदासपणुं पामता बता बंधु सहित दुर्योधनने बोमी दइ अने तुरत अर्जुननी पासे प्रवीने नमस्कार कस्यो. अर्जुने पण तुरत निर्मल नीतिथी हाथ जोमीने बनेला विद्याधरने कं के, “दे सखे ! फक्त गुरुरूप म्होटा बंधुनां वचनथी बंधायेला में हारी साथै युद्ध करधुं बे, दवे तुं श्रा दुर्योधन सहित सत्य प्रतिज्ञावाला म्हारा म्होटा बंधु पासे प्रवीने तेमने नमस्कार करतो बतो प्रीतिनी वृद्धिने माटे पोतानुं निरपराधीपशुं दर्शावी आप " अर्जुने आ प्रमाणे कां एटले प्रसन्न चित्तवालो ते विद्यावर अर्जुनने प्रगल करी वैमानमां बेसीने म्होटा उत्सवयी युधिष्ठिर पासे प्राव्यो. बंधुन सहित युधिष्ठिरने जोवा मात्रथी जेने मांयामां शूल भने शरीरमां पीमा उत्पन्न थर बे एवो तथा मनमां स्फुरणायमान थयेला क्रोध है

Loading...

Page Navigation
1 ... 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487