Book Title: Rushimandal Vrutti Purvarddha
Author(s): Shubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala Ahmedabad

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Page 473
________________ ( ४६६ ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वार्द्ध. 1 तमारो अनंत दुःखी भरपूर एवा नरकने विषे पात थशे. श्राथी मने मनमां बहु चिंता या बेके, तमे बहु दुःख पामशो. धिक्कार बे तेवा क्रूर कर्मने !!! हे पुत्रो ! माटे हुं तमने खबर कहेवा श्राव्यो हुं के, तमे ते पापनी शीघ्र । 2 ते शांति करो के, जेथी तमारे पापना समूहवमे नरकरूप खामीमां न पaj प. " ( युधिष्ठिर पोताना नाइयोने कहे बे के ) पितानां श्रावां वचन सांजली अत्यंत जय पामेला में तेमने पूठ्धुं के, दे पिता ! एवो कयो शुद्ध धर्म के, जेनुं श्राराधन करवायी श्रमारे नरकने विषे न परुवुं पके ? " प० बी पांकुपिता रूप देवताए कह्युं “हे सुतो ! श्री जिनेश्वर प्रणित अने सर्व जगत्ना प्राणीयोने हितकारी एवो दया प्रधान धर्म सर्व दुःखरूप समुइने पार उतारवामां वदाण समान समर्थ बे. निवे श्री अरिहंत प्रजुए कहेलो सुख देतुरूप ते धर्म, साधु ने श्रावकना नेदथी बे प्रकारनो बे. त्रण गुप्ति अने पांच महाव्रतरूप साधुनो धर्म पांच समितिथी प्रशंसा करवा योग्य बे. - ति शुद्ध क्रियावाला साधुजने ते धर्मनुं सारी रीते आराधन करवायी, उत्कृष्टश्री मोक्ष फल मले ने जघन्यथी सघला स्वर्ग लोकनी लक्ष्मी मले डे. चार शिक्षावत, त्रण गुणव्रत अने पांच अणुव्रत ए रूप बार प्रकारनो अति शुद्ध एव श्रावक धर्म च्युत देवलोकनां सुख प्रापनारो बे; माटे दवणां त मो पाप समूहने नाश करनारो उत्तम श्रावक धर्म श्रादरो अने चारित्रनोसवेब निचे शुद्ध जावयी साधुधर्म पालजो." में प्रावां पितानां वचन अंगीकार करयां एटले प्रसन्न मनवाला ते पिता पांसुदेव पोताने स्थानके गया. ( युधिष्ठिर पोताना बंधु ने कदे वे के, ) हे बंधुन ! माटे तमे पोतानां पापनो नाश करवाने श्रर्थे पिताए कहेला जिनराज धर्मने श्रादरो. " पोताना म्होटा बंधुनां श्रावता कालने विषे लक्ष्मी थापना अने पाप समूहनो नाश करना श्रावां वचन सांजलीने भीमादि सर्व नाइयो, मोक्ष सुख आपनारुं पुण्य करवा लाग्या. बीजानथी कोन पमामी न शकाय तेवा स्वभाववाला ते पांचे पांवो, शुद्ध श्रावक धर्मने विषे तत्पर यह लक्ष्मीने चपल स्वनाववाली जाणता बता दान आपवामांज उत्तम बुद्धि करवा लाग्या. सात क्षेत्रने विषे इव्यनो व्यय करता थने दरेक गामे यति प्रमाणवाला उत्तम जैन देगसरो कगवता एवा ते पांगवाए रूपादि धातुननां एक लाख जिनबिंव क "

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