Book Title: Rushi Sampraday ve Panch So Varsh
Author(s): Kundan Rushi
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 4
________________ ऋषि सम्प्रदाय के पाँच सौ वर्ष २२१ उपदेशों की प्रशंसा करते हुए धर्म प्रचार में तन, मन, धन से सहयोग देने का निवेदन किया। श्री लवजी ऋषिजी महाराज ने भी उनके भावों को जानकर कहा कि मेरी भावना भी सिद्धान्तानुसार शुद्ध क्रिया के पालन करने की है और आप लोग क्रियोद्धार के कार्य में सहायक हों तो मैं पुनः शुद्ध संयम ग्रहण करके क्रिया का उद्धार करूँ। इसी के लिए मैं गुरुजी से पृथक हुआ हूँ । इस कथन को सभी ने स्वीकार किया। - इसके अनन्तर श्री लवजी ऋषिजी, श्री थोभण ऋषिजी और श्रीभानु ऋषिजी महाराज ठाणा ३ खंभात नगर के बाहर एक बगीचे में पधारे और पूर्व दिशा के सन्मुख खड़े होकर श्री संघ की साक्षी पूर्वक पुनः भागवती दीक्षा अंगीकार की और शास्त्रानुसार आचार पालन करने-कराने का निश्चय किया। खम्भात से विहार कर विभिन्न क्षेत्रों में धर्म के स्वरूप को बतलाते हुए आपने शिथिलाचार के उन्मूलन का कार्य प्रारम्भ कर दिया। इधर यति वर्ग में आपके प्रचार से खलबली मच गई थी। उनके षड्यन्त्रों के फलस्वरूप खम्भात के नवाब द्वारा आपको नजर कैद भी किया गया लेकिन अन्त में धर्म के प्रभाव से आप मुक्त हुए । खम्भात के बाद विहार करते हुए आप अहमदाबाद पधारे । वहाँ भी जिन मार्ग का रहस्य समझाना प्रारम्भ कर दिया, फलस्वरूप अनेक प्रभावशाली व्यक्ति आपके अनुयायी बने । यहीं पर लोकागच्छीय यतिशिवजी ऋषि के शिष्य श्री धर्मसिंह जी महाराज से मिलाप हुआ और वे भी आपके मार्ग को सत्य मानकर क्रियोद्धार के मार्ग में सहयोगी बन गये । र अहमदाबाद से बिहार कर गुजरात, काठियावाड़, मारवाड़, मेवाड, मालवा आदि में धर्म-प्रचार द्वारा भव्य जीवों को बोध देते हुए पुनः गुजरात में पधारे और सूरत में चातुर्मास किया। सूरत के लिए आप अपरिचित नहीं थे । जनता आपसे अत्यन्त प्रभावित हुई। इस चातुर्मास काल में श्री सखिया जी भंसाली को भागवती दीक्षा प्रदान की। अब आप चार ठाणा हो गये थे। चातुर्मास समाप्ति के पश्चात आप पुन: अहमदाबाद पधारे और यहाँ पर २३ वर्षीय सुश्रावक श्री सोमजी को सं० १७१० में भागवती दीक्षा प्रदान की। यहीं पर यतियों के षड्यन्त्र से मुनि श्री भानु ऋषिजी को तलवार से मार डाला गया। इस हत्या का पता भी लग गया लेकिन आपके समझाने से श्रावकों ने हत्या का बदला लेने के लिए राज्याश्रय नहीं लिया। गुजरात काठियावाड़ को स्पर्शते हुए एक बार आप बुरहानपुर पधारे । यहाँ यतियों का काफी जोर था। यतियों के बहकावे में आकर श्रीलवजी ऋषिजी महाराज के अनुयायी श्रावकों को जाति बहिष्कृत करवा दिया । उनका कॅओं से पानी भरना तक बन्द करवा दिया। इस की फरियाद बादशाह तक पहुँच गई और यतियों के सभी प्रकार के षड्यन्त्रों का भण्डाफोड़ हो गया। लेकिन यति अपने कृत्यों से बाज नहीं आ रहे थे । अन्त में ऐसा समय आया कि बुरहानपुर में रंगारिन के हाथ से विषमिश्रित लड्ड को बहराने का षड्यन्त्र रचाकर आप श्री की हत्या कर दी गई। . N पूज्य श्री लवजी ऋषिजी का पार्थिव देह नहीं रहा किन्तु आपने जो क्रान्ति का बीज AAAJABAAdar ananAAAABAJALA MahanAJALAKRAMM ARIAL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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