Book Title: Rushi Sampraday ve Panch So Varsh
Author(s): Kundan Rushi
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ هر معلن عنها مع عامه راهو اعاده می بی م عرفت مو فرخ يخدعوه مراعنه مرفوع دفع عمران را همراه با مدیر فرامره مره مره مو مو مثه هم من عقرعهده من هرم आचार्यप्रवअभिशापायप्रवाभिम श्रीआनन्द अन्यश्राआनन्दान्य mmammamimmmmmmmmmmmm v omwww 234 इतिहास और संस्कृति ऋषि जी म. ने छत्तीसगढ़, सी० पी० में सर्वप्रथम पदार्पण करके नये क्षेत्रों में स्थानकवासी परम्परा को सूदढ किया है। आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी म० का बिहार क्षेत्र तो सम्पूर्ण भारत ही रहा है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि भारत का अधिकतम क्षेत्र आपकी धर्म यात्राओं से प्रभावित हो चुका है। ज्ञान प्रचार और साहित्य सेवा की दृष्टि से ऋषि सम्प्रदाय के सन्तों एवं आचार्यों के प्रयत्न अपना अनूठा स्थान रखते हैं। पं० रत्न श्री अमीऋषि जी म०, पूज्य श्री तिलोक ऋषि जी म० के पदों की गूंज तो हम प्रतिदिन सुनते ही हैं। पूज्य श्री अमोलक ऋषि जी म. द्वारा किये गये आगम साहित्य के सम्पादन एवं प्रकाशन के लिए कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा एक अल्प प्रयास सा माना जायेगा। आज भी उन महाभागों की परम्परा निर्वाह करते हुए पूज्य आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म. ज्ञान प्रचार एवं साहित्य सेवा में संलग्न हैं और उनके अन्तेवासी शिष्य भी। ऋषि सम्प्रदाय प्रारम्भ से ही संगठन का हिमायती रहा है / एक समाचारी, एक संगठन बनाने के लिए सदैव प्रयास किये गये और उसमें सफलता मिली। सादड़ी वृहत् साधु सम्मेलन आज के युग के संगठन का एक स्मरणीय प्रयास था। इस सम्मेलन को सफल बनाने में ऋषि सम्प्रदाय के सन्तों, सतियों एवं आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म० ने पूरा योग दिया था। एक श्रमण संघ के निर्माण के लिए अपने सम्प्रदाय का विलीनीकरण कर चतुर्विध संघ के समक्ष आदर्श उपस्थित किया था। श्रमण संघ के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होकर आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म. ने साधु संस्था को ज्ञान, संयम, साधना का सफल प्रयास किया और अब आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होकर संघ सेवा कर रहे हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ऋषि सम्प्रदाय के सन्तों एवं सतियों ने संघ एवं शासन की चिरस्मरणीय अनुकरणीय सेवा करते हुए साधुता के स्तर को सदैव उच्च से उच्चतम रखकर उसके शास्त्रीय आदर्शों को उजागर किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17