Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna Author(s): Sunilanand Nahar Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 6
________________ भूमिका उपोद्धात (prologue) जब कवि-प्रतिभा किंवा ऋषि-प्रज्ञा किसी महदुद्देश्य से सम्बद्ध महचरित्र की संस्थापना तथा आस्तिक जगत् के लिए 'रामादिवत् वर्तितव्यं न च रावणादिवत्' की प्रतिष्ठापना के लिए जाग्रत होती है। तब महाकाव्य का जन्म होता है, जिसमें सृजनधर्मिता का उद्दाम-वैभव, चिन्तन की सहजविभूति तथा दूरदर्शिता का अकाट्य और अखण्ड ललित-आलम विद्यमान होता है। जहाँ जीवन के सम्पूर्ण संभावनाओं की अभिव्यक्ति आस्तिकता के धरातल पर संगठित होती है। जहाँ रूप के साथ रमणीयता और चर्वणीयता का सहज योग विद्यमान रहता है। __ आचार्य महाप्रज्ञ विरचित 'ऋषभायण' अखण्ड मानवता का विलसित महाकाव्य है, जिसमें आचार्य महाप्रज्ञ जैसे अनाविल प्रतिभा, ऋतम्भरीया-प्रज्ञा तथा चिदम्बरीय-कल्पना ललित महाकवि की हृदय से संभूत सहज-संवेद एवं चिताकर्षक शब्दलहरियां विद्यमान है तो विद्वदमनोरंजिनी चेतना की ऊर्मियाँ भी उल्लसित हैं। भगवान् किंवा महामानव ऋषभ के चरित्र का आश्रयण कर अतीत और वर्तमान का सहज समन्वय संस्थापित किया है। इस विशिष्ट महाकाव्य में कवि ने सार्थक बिम्बों का प्रयोग किया है। उन्हीं बिम्बों का अनुशीलन, परिशीलन में मेरी मति प्रवृत्त हुई। समस्या (Problem) बिम्ब क्या है ? ऋषभायण के संदर्भ में बिम्ब का क्या स्वरूप हो सकता है, बिम्ब की काव्य में क्या आवश्यकता है, बिम्ब के कितने भेद हैं-आलोचना शास्त्र तथा कवि-परम्परा में बिम्बों की उपयोगिता है, ऋषभायण के कवि ने किस तरह के बिम्बों का प्रयोग किया है। उनकी बिम्ब-प्रयोग की सार्थकता क्या है-आधुनिक संदर्भ में उसकी उपयुज्यता क्या है ? आदि समस्याओं के समाधान हेतु तथा ऋषभायण के हार्द को समझने के लिए, क्योंकि काव्य का प्राण तत्व बिम्ब होता है, ही इस शोधकार्य में संलग्नता का मेरा मानस बना। उद्देश्य ऋषभायण आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित महाकाव्य है। यह हिन्दी का कालजयी काव्य है। इस महाकाव्य में भावना तथा विचारणा का अद्भुत सामंजस्यPage Navigation
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