Book Title: Ratnamuni Smruti Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
Publisher: Gurudev Smruti Granth Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ सम्पादक-संकथन इस विराट और विशाल विश्व में कौन किस का सस्मरण करता है । काल के महासिन्धु मे मनुष्य के जीवन-बिन्दु का मूल्य भी क्या है ? अनुदिन ससार मे हजारो, लाखो और करोडो मनुष्य जन्म धारण करते है और मरते रहते है। इनमे से कितनो को हम याद रख पाते है ? अनन्त काल के अनन्त जीवन-बिन्दुओ को याद रखना तो किसी प्रकार भी सम्भवित नही है। अपने वर्तमान जीवन के प्रिय स्नेही साथियो को भी हम दो-चार साल मे विस्मृति के गहन गर्त मे डाल देते है। जिन माता-पिताओ की सुखद गोद मे मनुष्य ने किलकारिया भरी, उन्हे भी वह भूल बैठता है । पति-पत्नी की सुख-दुख की कहानी, कहानी बनकर निःशेष हो जाती है । जिन प्यारे नन्ने-मुन्नो को मनुष्य ने अपने प्यार की दुलार मे पाला-पोषा, उनके दारुण वियोग की कचोट को भी जीवन-यात्रा की कुछ दूरी के बाद मनुष्य भूल जाता है। मतलब, मनुष्य अपनो को और स्वय अपने आपको रात-दिन भूलता ही चला आया है। फिर भी क्या कारण है कि कुछ महापुरुष इन्सान के दिल और दिमाग पर इतनी गहनता और धनता के साथ अकित हो जाते है कि उन्हे भुलाना ही सम्भव नही रह पाता । ज्यो-ज्यो इन्सान उन्हे भूलने की चेष्टा करता है। त्यो-त्यो वे और भी अधिक उभर-उभर कर उसकी चेतना पर छा जाते है । अपने स्वभाव के कारण मनुष्य उन्हे भी भूलना तो चाहता है, किन्तु फिर भी भूल नहीं पाता । दर्शनशास्त्र की भाषा मे इस तथ्य को महापुरुषो के जीवन का अनुभाव, प्रभाव और जादू ही कहना चाहिए। गुरुदेव के पावन और पवित्र जीवन का अनुभाव और प्रभाव भी कुछ ऐसा ही अद्भुत था, कि आज पूरे सौ-सालो के बाद भी जन-चेतना उन्हे अपनी स्मृति पर से उतार नहीं सकी । उन्होने समाज पर जो अनन्त उपकार किए थे, उन्ही का यह प्रतिफल है, कि आज भी समाज की चेतना उन्हे विस्मृत नहीं कर सकी । और अनन्त भविष्य में भी उनके उपकारो को विस्मृत नही किया जा सकेगा? उनकी पुण्य शताब्दी मनाकर, उनकी स्मृति मे स्मृति-ग्रन्थ निकाल कर हम उन पर किसी प्रकार का उपकार नहीं करते बल्कि हम स्वय उपकृत होते है । जो कुछ हमने उनसे पाया है, उसका अनन्तवा भाग भी लौटाने की हममे क्षमता नही है। भुक्ति से पराड मुख करके उन्होने हमे मुक्ति के उन्मुख किया, यही उनके जीवन का हमारे दिल और दिमागो पर अनुभाव, प्रभाव, चमत्कार और जादू है, जो उन्हे हमारी चेतना-स्मृति पर से विस्मृत और विलुप्त नही होने देता है। धन देने वाले माता-पिता से, स्नेह देने वाले भाई-बहनो से और प्रणय देने वाले पति-पलियो से शास्त्रकारो ने अनन्त गुण अधिक उपकार उस गौरवमय गुरु का स्वीकार किया है, जिसने भव-चक्र के विभाव-भावो से विमुक्त करने की ज्ञान-कला का

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 687