Book Title: Ratnamuni Smruti Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
Publisher: Gurudev Smruti Granth Samiti

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Page 11
________________ संयोजक-संयोजन किसी महापुरुष के दिव्य गुणो का स्मरण और कीर्तन करना किसी महान् भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है । वास्तव मे महापुरुष के गुणो का चिन्तन, जीवन के विकास और उत्थान का साधन होता है। दिव्य-पुरुपो के ध्यान से और चिन्तन से ध्याता का जीवन भी दिव्य बन जाता है। दिव्य पुरुषो के स्वरूप के ध्यान से, नाम के जप से और आचरण के अनुसरण से महान् लाभ प्राप्त होता है। गुरुदेव श्रद्धेय श्री रत्नचन्द्र जी महाराज अपने युग के सुप्रसिद्ध विद्वान, मधुर प्रवक्ता, परम तपस्वी और प्रखर योगी थे । उनकी योग-साधना के चमत्कार जन-चेतना की स्मृति पर आज भी सौसाल के बाद भी अकित है और उनकी दिव्यता का प्रभाव, उस युग की जन चेतना पर इतना गहरा और व्यापक पडा था, युगो के युग बीत जाने पर भी लोग उन्हे भूले नही है, और भविष्य में भी नहीं भूलेंगे। उनका त्याग, उनका सयम, उनका वैराग्य और उनकी आराधना-साधना महान थी। उस दिव्य पुरुष और युग-पुरुष के पावन चरणो मे, इस पुण्य शताब्दी के अवसर पर, मै हार्दिक भावना के साथ श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। श्रद्धेय गुरुदेव का आगरा पर विशेष अनुग्रह था। आगरा वाले कभी उनके उपकारो को भूल नही सकते । यहाँ के जन-जन के मन-मन के कण-कण मे गुरुदेव की दिव्य छवि अकित है । आध्यात्मिक दृष्टि से उनकी शिक्षा और उनके उपदेश ही उनकी पुण्य-स्मृति है । फिर भी भौतिक दृष्टि से भी आगरा मे अनेक संस्थाएं और स्मृति चिन्ह उनकी पावन-स्मृति मे बने है । जैसे गुरुदेव की समाधि, लोहामडी मे मजूमल के बगीचे मे गुरुदेव के चरण-चिन्ह, सेठ के बाग मे गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज के चरणचिन्ह और एक छोटा-सा समाधि भवन बना हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र मे श्री रल मुनि जैन इन्टर कालेज, श्री रत्नमुनि जैन गर्ल्स इन्टर कालेज, श्री रत्नमुनि जैन बाल-शाला और श्री वीर पुस्तकालय प्रसिद्ध है। आगरा नगर महापालिका ने 'श्री रलमुनि मार्ग' का उद्घाटन करके गुरुदेव के प्रति अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की है। गुरुदेव की पुण्य-शताब्दी मनाने की और एक 'स्मृति-ग्रन्थ' प्रकाशित करने की बात, जब मेरे । सामने आई, तब मुझे बडी प्रसन्नता का अनुभव हुआ। पूज्य गुरुदेव उपाध्याय अमर मुनि जी महाराज के आदेश से तथा समाज के वयोवृद्ध लोगो की प्रेरणा से और साथियो के कहने से मैंने 'स्मृति-ग्रन्थ' के प्रकाशन का कार्य अपने हाथ में ले लिया। मुझे परम प्रसन्नता है, कि वह कार्य अब बडी सुन्दरता के साथ परिपूर्ण हो चुका है।

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