Book Title: Ranakpur Mahatirth
Author(s): Anandji Kalyanji Pedhi
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 4
________________ भक्ति और कला के संगम का तीर्थ श्री राणकपुर राणकपुर का मन्दिर "कला कला के लिए" के पार्थिव सिद्धान्त के बजाए "कला जीवन के लिए" के उमदा गंभीर सिद्धान्त का एक श्रेष्ठ द्दष्टान्त है - मानो अपने जीवन का सारसर्वस्व परमात्मा के चरणों में भेंट चढ़ाकर मानव अपने जीवन को कृतकृत्य मानता है। हृदयंगम व सुरम्य कला के विपुल भंडार-सा यह सुप्रसिद्ध जैन श्वेताम्बर तीर्थस्थल पश्चिम रेलवे के फालना स्टेशन से ३५ किलोमीटर की दूरी पर आया हुआ है। ऊँचे स्तर पर खड़ा किया गया यह मन्दिर तिमंजिला है । यह जिनालय अपनी ऊँचाई से पीछे की ओर स्थित ऊँची-ऊँची पहाड़ियों के साथ घुलमिलकतर मानो आकाश से बातें करता हो ऐसा आभास होता है। जैसे जैसे ऊपर जाते हैं, मन्दिर के ऊपर के मंजिलों की ऊँचाई क्रमशः कम होती जाती है, किन्तु जिनालय की शोभा व भक्त की भावना बढ़ती जाती है। पूरा मन्दिर सुकुमार व उज्जवलता की निधिसमान संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया है। कल-कल नाद से बहते निर्मल झरने के समान नन्ही-सी मघाई नदी, स्थिर आसन लगाकर बैठे हुए आत्मसाधकों-सी अरावली गिरिमाला की छोटी छोटी पहाड़ियाँ और शांत, एकांत तथा निर्जन अरण्य प्रकृति- इस त्रिविध सौन्दर्य के बीच राणकपुर का सुविशाल, गगनचुंबी, भव्य जिनप्रासाद देखते हैं तो लगता है कोई खेलकूद करता सुहावना बालक अपनी तेजस्वी, स्नेहिल माता की प्यारभरी गोद में हँसता-खेलता कलशोर मचा रहा हो, वैसा अनुभव होता है। प्रकृति का सहज सौन्दर्य तथा मानव-निर्मित कला-सौन्दर्य का जब सुभग समन्वय सध जाता है, तब कैसा सुन्दर, अपूर्व योग बनता है, मानव के चित्त को कितना आह्लादित करता है और भक्त की भावनाओं को कितना छू जाता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण राणकपुर का तीर्थ है। आलीशान जिन मंदिर का विशाल दृश्य

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