Book Title: Ranakpur Mahatirth
Author(s): Anandji Kalyanji Pedhi
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 11
________________ किसी शुभ क्षण में मंत्री धरणाशाह के हृदय में भगवान ऋषभदेव का एक भव्य मन्दिर बनवाने की भावना जगी। यह मन्दिर शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना और सर्वांगसुन्दर बने ऐसी उनकी मनोकामना थी। एक जनश्रुति तो ऐसी भी है कि, मंत्री धरणाशाह ने, एक बार रात्रि के समय सुन्दर स्वप्न देखा और उसमें उन्होंने स्वर्गलोक के नलिनीगुल्म विमान के दर्शन किये। नलिनीगुल्म विमान स्वर्गलोक का सर्वांग-सुन्दर विमान माना जाता है। धरणाशाह ने निश्चय किया कि मुझे ऐसा ही मनोहारी जिनप्रासाद बनवाना है। फिर तो, उन्होंने अनेक शिल्पियों से मन्दिर के नक्शे मँगवाये । आखिर मुन्डारा गाँव के निवासी शिल्पी देपा का बनाया हुआ चित्र श्रेष्ठी के मन में समा गया। शिल्पी देपा मस्तमिजाजी और मनमौजी कलाकार था । अपनी कला के गौरव व बहुमान की रक्षा के लिए वह गरीबी में भी सुख से निर्वाह कर लेता था। मंत्री धरणाशाह की स्फटिक-सी निर्मल धर्मभक्ति देपा के अन्तर को छू गई । और उसने मंत्री की मनोगत भावना को साकार कर सके ऐसा मनोहर, विशाल व भव्य जिनमन्दिर निर्माण करने का बीड़ा उठा लिया - मानो धर्मतीर्थ के किनारे पर भक्ति और कला का सुन्दर संगम हुआ हो। 5 मंत्री धरणाशाह ने राणा कुंभा के पास मन्दिर के लिये जमीन की माँग की। राणाजी ने मन्दिर के लिये उदारता से जमीन भेंट दी और साथ ही साथ वहाँ एक नगर बसाने की भी सलाह दी। इसके लिये माद्री पर्वत की तलहटी में आये हुए प्राचीन मादरी गाँव की भूमि पसन्द की गई। इस प्रकार मन्दिर के साथ ही साथ वहाँ नया नगर भी खड़ा हुआ। राणा के नाम पर से ही उस नगर का नाम 'राणपुर' रखा गया। बाद में लोगों में वही "राणकपुर" के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुआ । संगीतमय नृत्यरत देवांगनाएं

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