Book Title: Ranakpur Mahatirth
Author(s): Anandji Kalyanji Pedhi
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 15
________________ इस मन्दिर के चार द्वार है । मन्दिर के मूल गर्भगृह में चारों दिशाओं से दर्शन देनेवाली भगवान आदिनाथ की बहत्तर इंच की विशाल और भव्य चार प्रतिमायें बिराजमान हैं। दूसरे और तीसरे मंजिल के गर्भगृह में ही इसी तरह से चार चार जिनप्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। इसलिये यह मन्दिर "चतुर्मुख जिनप्रासाद" के नाम से भी पहचाना जाता है। छिहत्तर छोटी शिखरबन्द देवकुलिकायें, रंगमंडप तथा शिखरों से मंडित चार बड़ी ॥ देवकुलिकायें और चारों दिशाओं में रहे हुए चार महाधरप्रासाद-इस प्रकार कुछ चौरासी देवकुलिकायें इस जिन-भवन में है-मानो ये संसारी आत्मा को चौरासी लाख जीव-योनियों से व्याप्त भवसागर को पार कर के मुक्त होने की प्रेरणा देती हैं। चार दिशा में आये हुए चार मेघनाद मंडपों की तो जोड़ ही मुश्किल हैं। सूक्ष्म सुकुमार और सजीवन नक्काशी से सुशोभित लगभग चालीस फीट ऊँचे स्तंभ, बीच-बीच में मोतियों की मालाओं से लटकते हुए सुन्दर तोरण, गुंबद में जड़ी हुई देवियों की सजीव पुतलियाँ और उभरी हुई नक्काशी से युक्त लोलक से शोभित गुंबद-यह सब दर्शक को मुग्धकर देता है। __आकाश में चारों और चमकते हुए अनगिनत सितारों की तरह, मन्दिर में जगह जगह | बिखरा हुआ और शिल्प तो ठीक केवल मेघनाद मंडप की शिल्पकला-समृद्धि ही यात्री के मन से प्रशंसा के पुष्प प्रस्फुटित करने के लिए पर्याप्त हैं । मेघनाद मंडप में से स्वस्थ-शांत-एकांत चित्त से प्रभु-मूर्ति के मनभर दर्शन करता हुआ मनुष्य विराट परम-आत्मा के सम्मुख स्वयं कितनी अल्प आत्मा है, इसकी अनुभूति प्राप्त करके खुद के अहं तथा अभिमान को गला देने की भावना का अनुभव करता है। यात्रिकगण को इसी भाव का स्मरण कराती हैं ; मेघनाद मंडप में प्रवेश करते समय बायें हाथ के एक स्तम्भ पर मंत्री धरणाशाह और शिल्पी देपा की प्रभुसम्मुख तराशी हुई आकृतियाँ। इन दोनों महानुभावों को देखते हैं तो मंत्री की भक्ति की कला और स्थपति की कला की भक्ति के सामने व सिर झुके बिना नहीं रहता। कालीय नागदमन का बेनमून शिल्प

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