Book Title: Rajprashniya Sutra
Author(s): N V Vaidya
Publisher: Khadayata Book Depot

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Page 14
________________ ११ यावच्छब्दकरणात्, 'लउएहिं छत्तोवगेहिं सिरीसेहिं सत्तवण्णेहिं लोहिं दधिवण्णेहिं चंदणेहि अज्जुणेहि नीजेहिं कयंबेहिं फणसेहिं दाडिमेहिं सालेहिं तमालेहिं पियालेहिं पियंगूहिं रायरुकखेहिं नंदिoad हिं' इति परिग्रहः, एते च लवकच्छत्रोपगशिरीष सप्तपर्णदधिपर्णलुब्धकधवचन्दनार्जुननीपकदम्बफनसदाडि मतालतमालप्रियालप्रियङ्गराजवृक्षनन्दिवृक्षाः प्रायः सुप्रसिद्धाः, ' ते णं तिलगा जाव नंदिरुक्खा कुसविकुसे 'त्यादि ते तिलका यावनंदिवृक्षाः कुशविकुशविशुद्धवृक्षमूलाः, अत्र व्याख्या पूर्ववत्, 'मूलवन्तः मूलानि प्रभूतानि दूरावगाढानि च सन्त्येषामिति मूलवन्तः कन्द एषामस्तीति कन्दवन्तः, याव च्छब्दकरणात् सन्धिमन्तो तयामन्तो सालमन्तो पवालमन्तो पत्तमतो पुष्कमंतो फलमंतो वीयमंतो अणुपुव्विसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एगखंधा अणेगसाहप्पसाहविडिया अणेगनरवामसुप्पसारिय अगिज्झघणविपुलवट्टखंधा अच्छिदपत्ता अविर - लपत्ता अबाईइपत्ता अणईणपत्ता णिव्वुयजरढपंडुपत्ता नवहरियभिसंतपत्तभारंधयारगंभोरदरिसणिजा उवनिग्गयनवतरुणपतपल्लवा कोमल उज्जलचलंत किसलय सुकुमालपवालसोभियवरंकुरग्गसिहरा निच्चं कुसुमिया निचं मउलिया निश्चं लवइया निचं थवइया निचं गुलइया निचं गोच्छिया निचं जमलिया निश्चं जुयलिया निश्चं णमिया निचं पणमिया निश्चं कुसुमियम उलिय लवइयथव इयगुलइय गृच्छियज मलियजुयलियविणमियसुपणमियविभत्तपिंडिमंजरिवर्डिसयधरा सुकबरहिणमयणस लागा कोइलको रुगकभिंगार ककों डलकजीवंजीवक नंदीमुखक विलपिंगलक्खगकारंडव चक्कवाककलहंससारस अणेगस उणगणमिहुणविरइयसद्दोन्नइयमहुरसरणाइया सुरम्मा सुपिंडियदरियभमरमहुयरिपहकरपरिल्लवमत्त छप्पयकुसुमासवलोल महुर गुमगुमं तमुंजंतदेसभागा अब्भितरपुप्फफला बाहिरपत्तोच्छण्णा , Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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