Book Title: Puratan Jain Vakya Suchi 01 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य • अधिकारी भी नही समझता। मेरी इस शिथिलता, अयोग्यता, अव्यवस्था अथवा परिस्थिातयों की विवशताके कारण अनेक पाठक सज्जनोको जो प्रतीक्षाजन्य कष्ट उठाना पड़ा है उसका मुझे भारी खेद है । अस्तु, प्रस्तावनाके पीछे जो भारी परिश्रम हुआ है, जो अनुसन्धान-कार्य किया गया है और उसके कितने ही लेखो-खासकर 'सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन', गोम्मटसार और नेमिचन्द्र, 'तिलोयपएणत्ती और यतिवृषभ' जैसे निबन्धो-द्वारा जो नई नई विशिष्ट खोजें प्रस्तुत की गई हैं उन सबको देखकर संभव है कि आकुलित हृदय पाठकोको सान्त्वना मिले और वे अपने उस प्रतीक्षाजन्य कष्ट का भूल जाय । यदि ऐसा हुआ तो यही मेरे लिये सन्तोपका कारण होगा। __यह ग्रन्थ क्योंकर बना और इसकी क्या उपयोगिता है. इस बातको प्रस्तावनामें भले प्रकार व्यक्त किया गया है। यहाँ पर मैं सिर्फ इतना ही बतलादेना चाहता हूँ कि इस प्रथके निर्माण और प्रकाशनका प्रधान लक्ष्य रिसर्च स्कॉलरो-शोध-खोसके विद्वानोको उनके कार्यमे सहायता पहुँचाना रहा है। ऐसे विद्वान कम है, इसलिये ग्रंथकी कुल ३०० प्रतिया ही छपाई गई है, कागज़की महंगाई और उसकी यथेष्ठ प्राप्तिका न होना भी प्रतियोके कम छपानेमे एक कारण रहा है। प्रन्थकी प्रस्तावनाको जो रूप प्राप्त हुआ है यदि पहलेसे वह रूप देना इष्ट होता तो प्रन्थकी प्रतिया हजार भी छपाई जाती तो वे अधिक न पडती, क्योकि प्रस्तावना अब सभी साहित्य तथा इतिहासके प्रेमियोकी रुचिका विषय बन गई है। परन्तु जो हुआ सो हो गया, उसकी चिन्ता अव व्यर्थ है। हॉ, प्रतियोंकी इस कमीके कारण ग्रन्थका जो भी मूल्य रक्खा गया है वह लागतसे बहुत कम है। पहले इस सजिल्द ग्रन्थका मूल्य १२) रु० रक्खा गया था और यह घोषणा की गई थी कि जो ग्राहक महाशय मूल्य के १२) रु. पेशगी भेज देंगे उन्हें उतनेमें ही ग्रन्थ घर वैठे पहुंचा दिया जायगा-पोष्टेज खर्च देना नहीं पडेगा । परन्तु इधर प्रस्तावना धारणासे अधिक बढ़ गई और उधर प्रस्तावनादिकी छपाईका चार्ज प्रायः दुगुना देना पड़ा । साथ ही कागजकी जो कमी पडी उसे अधिक दामोमे कागज खरीदकर पूरा किया गया । इसलिये प्रन्थका मूल्य अब तैयारी पर लागतसे कम १५) रु० रक्खा गया है, फिर भी जिन ग्राहकोसे १२) रु० मूल्य पेशगी आचुका है उन्हें उसी मूल्यमे अपना पोष्टेज लगाकर ग्रंथ भेजा जायगा। शेषको पोण्टेजके अलावा १५) रु. में ही दिया जायगा और उनमे उन ग्राहकोंको प्रधानता दी जायगी जिनके नाम पहलेसे ग्राहकश्रेणीमें दर्ज हो चुके हैं। अन्तमें मैं संस्थाकी ओरसे डा० ए० एन० उपाध्ये एम० ए० का उनके Introduction के लिये और डा० कालीदास नाग एम० ए० का उनके Foreword के लिये भारी आभार व्यक्त करता हुआ विराम लेता हूं। जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाता वीरसेवामन्दिरPage Navigation
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