Book Title: Punyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ 57 कीरति कमला विस्तरी उजवल अति उदार श्री गुरु हीरजी तुम्ह तणो महिमा मेरु समान ! ठाम ठाम गवाईइ सप्तस्वर बंधान राग- सिधू उगडी श्रीहीरविजयसूरीश्वरु जगगुरु तपगच्छराय । अनंत गुण गुरु तुम्हतणा मइ लिख्या नवि जाय रे प्रभु तुम्ह गुण घणा राग हृदय नवि माय रे 1 जागति प्रेरइ बहु कहो हवाइ कोण उपाय रे || प्रभु तुम्ह गुण घणा मइ लिख्या नवि जाय रे । प्रभु तुम्ह गउ घणा गंगा नदी वेलुकणा जो को गणीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा । गुणगणी न सकंति रे प्र० सकल समुद्रना बिन्दुआ जो को गणीअ सकंति । तो हर हीरजी तुम्हतणा तो कइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० गगन तारा ज्ञानी विना जो को, गणीअ संकति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० चउदराज परमाणुआ जो. को, गणीअ सकंति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० जलधि निज भुजा दंडई जो को तरी संकति । तो हइ हीरजी तुम्हतणा तो हइ जगगुरु तुम्हतणा ॥ गुण गणी न सकंति रे प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥ ५३॥ ॥ ५४॥ ॥ ५५॥ ५६॥ ॥ ५७॥ ॥ ५८॥ ॥ ५९॥ ॥ ६० ॥ ।। ६१ ।। www.jainelibrary.org

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