Book Title: Punyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ 59 ।। ७२ ।। चतुर चातुरी रंजित जनतासुविहित साधु सिंगार रे हीरजी० ॥ ७१ ॥ भविक कमल वन खंड विकासन कमल बन्धु समान । दूरदूरिततिमिरभर टालइ गालइ मोहना मान रे हीरजी ० कामसुभट तइ हठ करी मार्यो क्रोध कीयो चकचूर । मायावेली अनमूलन उलट्य वंल्लोल कल्लोल जलपूर रे हीरजी० ॥ ७३ ॥ प्रसन्नहृदय करुणानु सिन्धु, बन्धुर जलधिगंभीर । वादि मानमतंगजकेसरी मेरुमहीधर धीर रे हीरजी० ।। ७४ ।। सेवक जन चिन्तामणि सगवड समीहित दान दात (ता) र 1 हणि कलियुग गुरु तुं अवतरिओ श्रीगौतम गणधार रे हीरजी० ॥ ७५ ॥ श्रीविजt दानसूरीश्वर पाटइं उदयो अविचल भाण । कर जोडी चतुर्विध श्रीसंघ मानइ तुम्ह तणी आण रे हीरजी० ॥ ७६ ॥ राग गोडी दूहा हीरजी तुम्हगुण वेलडी विस्तरी भुवनभरपूर । तारामिस समान फूली फल तिहां चंद्रनइ सू ॥ ७७ ॥ धन ते श्रावक-श्राविका जे तुम्ह सुणइ वखाण । धन जे निरखई तुम्ह मुख ग्रह उगमतई भाण ॥ ७८ ॥ परिमल तुम्ह गुण केतकी मन मोहन हो त्रिभुवन भुवन मझार । लाल मनमोहन हो मनमोहन हो श्रीहीरविजयलाल । मनमोहन हो सज्जननिज मस्तक वहइ म० । Jain Education International तुम्ह गुणकुसुम उदार लाल० ॥ ७९ ॥ पंडित जन कंठई वहइ म० । जगगुरु तुम्ह गुणमाल लाल० । इन्द्राणी राइ रम म० । मेरुकानन रसाल० लाल० ॥ ८०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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