Book Title: Punyaharsh Rachit Lekh Shrungar
Author(s): Mahabodhivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 16
________________ अई गुरु तुह्मतणी प्रित प्रित मोह्या अकबरि लघु सेवक विसारीयाले ।। १३६॥ एक नही उत्यम रित रित प्रित करी पहलु देखाडि छे हो पछि ॥१३७॥ खिर निरनी प्रित प्रित तेहवी उत्यमनी गोपंथ सरखी अवरनीओ ॥१३८॥ धुतारा ते देसना लोक लोक भोलवीया तुह्मनि लाभ देखाडी अति घणाओ ॥१३९॥ अम्हे गुजराति लोक लोक भोला भद्रक कुडकपट कई नवी वेयाओ ॥१४०।। खमावे पछी तु दूत दूत पाए लागी गुरुनि अदीकु ओछु ए बोलीय ओ ॥ १४॥ वीनवे वडो वजीर धनविजयगणि जे छे गुरुनि मानीतो ओ || १४२॥ दीजे दूत अरदास अरदास हमाउनंदन स्याही अकबर निजई में ॥ १४३॥ कियावंत गुजरात गुजरात भेजो गुरुजनि उहि देसते तुम्ह तणो मे ॥१४४॥ वहलो तु आवे दूत दूत तेडी श्री गुरुनि दान देसा तुहुंनि घणु मे ॥ १४५।। देसा सोवननी जीह जीह मुगट वर रयणन नवलखो हार गलातणो मे ॥ १४६।। धनकनकनी कोड कोड देसा तुहनि दूतपणु ताहारु टालसा मे ॥ १४७|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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