Book Title: Punyaharsh Rachit Lekh Shrungar Author(s): Mahabodhivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ 45 ॥ ३७॥ अमर सरिखा पुरुष तु जय जय ॥ ३२॥ स्याहि अकब्बरनी जिहां आण अधिक स्युं किजइ वखाण । स्वर्गखंड अवता तु जय जय ॥ ३३॥ राग-देसाख सोहि अमरपुरी अ समान मध्यखंडमंडनं प्रधान । नयर फतेपुर जगवदीत उत्तम घर घर छइ जिहां रीत ॥ ३४|| गढ मढ मंदिर पोल पगार चोपट चोहटा जिहां उदार । हट्ट तणी चिहुं पासि उल माणिकचोक विचइ अमोल ॥ ३५।। धनद समाना जिहां धनवंत वसइ व्यवहार्या अतिपुण्यवंत । भोग पुरंदरलीलविलास कियो काम निजरूपइ दास ॥ ३६।। रतिरूप जिहां सुंदर नार घूघर नेउरनइ रणकार । कामी केरां मन मोहंति मंथर मराली गति सोहंति निरखइ केइ नाटक रंगरोल करइ केइ कथाकल्लोल । गवडावइ बइठा केइ गान भावभेद प्रीछइ सुजान ॥ ३८॥ कनकदंडमंडित प्रासाद इन्द्रविमानसुं करता वाद । श्री जिनवर केरां जिहां तुंग कैलास तणा जाणे के तुंग ॥ ३९॥ जिहां मुनिवर पोसाल विशाल जग गुरु हीरजी दीइ रसाल । बइठां जिहां मधुरो उपदेश सुणइ सादर भविअन सविसेस ।। ४०॥ प्रबल प्रतापवंत महीनाह राज करइ तिहां अकबर स्याह । स्याहि हमाउ केरो पुत्र निज भुजबल सवि जित्या शत्रु ॥ ४१।। विस्तरइ जेहनी आगन्या चंड विकट रायना ते लइ दंड । पलावइ चिहुं खंड अमार जाणइ बीजो श्रीकुमार ॥ ४२।। न्यायनीतंइं जाणे के राम अवतरिउ कलियुग अभिराम । रूपई जाणई सोहद काम खानमलिक करद प्रणाम ।।१३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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