Book Title: Prayashchitta Sangraha
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ छेदापण्डच्छेदशास्त्रयोर्गाथासूत्राणां अकाराद्यनुक्रमणिका। अ. अइबालबुद्धदार अच्छादणं महगवं अजाण चेलधुवणे अण्हं आदिण्णे आ य छबदु दोषिण अ य सत्त य छन्दु अट्ठसयणमोक्कारा अद्यारस वीसदिमा अहियअणेयभुत्ते अण्णाणिमित्तपउंजिद अण्णरिसीणं च दु रिसिं अण्णाणअहंकारेहिं य अण्णाणधम्मगारव अण्णाणवाहिदप्पहि अण्णाणवाहिदप्पे अण्णावि अस्थि अणुगुण अणुकंपा कहणेण पृष्ठम् । अण्णेहि अविण्णादे ४७ अण्णं वि य मूलुत्तर अथिरादावणअब्भो | अप्पप्पणो सलागा अप्पयदपयदचारी अप्पासुगजलपक्खा अप्पासुगे वसंतो अप्फालिऊण हत्थं अप्पाणं विणिवायंति अब्बंभासिणित्थी | अब्बंभं भासंतो झब्भोवगासठाणा अयेउवयरणे णडे अवसेसणिसासमए अवसेसतवसलागा अविरदसुत्तपोधि | अह जइ सत्तिविहीणो अह पडिकमणं ण सुयं | अहवा जत्ताजत्ते अहवा पढमे पक्खे अहवा पयत्तअपयत्त २३ अह्वा समक्खअसमक्ख आ. आगाढाधच्चपय AN अण्णे भणंति एवं " " " " , चाऊ " , जोगा अश्णे वि एवमादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200