Book Title: Prayashchitta Sangraha
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 191
________________ ६० एलायरियम्स दिणा एवं जेत्तिय दिवरा एवं दसविधपाय एवं दसविध साए एवं पायच्छित्तं एवं वितिचउरिध्यि एवं मट्टियजलपारे एसो अवंदणिज्जो ७४ | कोमलहरियतिणंकुर ५३ कोहेण व लोहेण व ५३ | कंटय कलिं च पासा ख. ३७ | खत्तियबभमवइसा | खत्तियवणिमहिलाओ. खत्तियसुद्दत्थीओ खमणं छद्रमदसम ८८८ NN ९ ८९ ४ कट्ठादिवियडिचालण कप्पव्ववहारे पुण कलह काऊण खमा काउस्सग्गुववासा काउस्सग्गो आलो काउस्सग्गो खमणं काउस्सग्गो दाणं काउस्सग्गो सुज्झदि काऊण य जिणपूया कागादिअंतराए गणहरवसहादीण गणिणाचत्तणिहेणव गहिदोगहम्मि विसरि गामादिआसयाणं गिंभे दिवसम्मि तहा | गोइत्थीबालमाणुस गोघादवंदिगहणे गोयरपयस्स लिंगु गंतूण अण्णदेसे ६५ घणहिमसमये गिो घादे एक्कासिं १०१ चउरसयाई बीसुत्तराई चहुविहमेयविहं वा. चउसट्ठी गुरुमासा ४४ चक्खिंदियादिदुप्पीर १४ | चम्मारवरुडछिपिय १०० । चाउम्मासियवरसिय कारुगगिहाणपाणं काश्यपत्तम्मि पुणो कालम्मि असंपहुते कावालियअण्णपाण किरियावंदणाणियमे कुइं खंभं भूमि कुणउ मुणी कल्लाणा केई पुण आयरिया १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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