Book Title: Prayaschitta Sangraha
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 190
________________ छेदपिण्डच्छेदशास्त्रयोर्गाथासूत्राणां अकाराद्यनुक्रमणिका। १४ ५१. २२ . अ. अइबालबुडदासे अच्छादणं महग्धं अजाण चेलधुवणे अहण्हं आदिण्णे आ य छबदु दोण्णि अह य सत्त य छच्चदु अट्ठसयणमोक्कारा अद्यारस वीसदिमा अद्वियअणेयभुत्ते अण्णणिमित्तपउंजिद अण्णरिसीणं च दु रिसिं अण्णाणअहंकारेहिं य अण्णाणधम्मगारव अण्णाणवाहिदप्पेहि अण्णाणवाहिदप्पे अण्णावि अत्थि अणुगुण अणुकंपा कहणेण . पृष्ठम् । अण्णेहि अविण्णादे ४७ अण्णं वि य मूलुत्तर अथिरादावणअब्भो अप्पप्पणो सलागा अप्पयदपयदचारी | अप्पासुगजलपक्खा अप्पासुगे वसंतो | अप्फालिऊण हत्थं अप्पाणं विणिवायंति अब्बभभासिणित्थी अब्बभं भासंतो अब्भोवगासठाणा | अयउवयरणे णटे अवसेसणिसासमए अवसेसतवसलागा अविरदसुत्तपवोधि अह जइ सत्तिविहीणो अह पडिकमणं ण सुयं अहवा जत्ताजत्ते अहवा पढमे पक्खे | अहवा पयत्तअपयत्त अहवा समक्खअसमक्ख ५६ ८ W ४९ अण्णे भणति एवं __" " " " , चाऊ " , जोगा अण्णे वि एवमादी आ. आगाढाधच्चपय

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