Book Title: Prayaschitta Sangraha
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikyachandra Digambar Jain Granthmala Samiti

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Page 193
________________ (४) चाउव्वण्णपराधं १०२ १९ । जादे पायच्छित्तं | जावदिया आवसुद्धा जावदिया परिणामा जिणपडिमागमपोच्छय जिणभवणंगणदेसे जे गच्छादो संहा जे वि य अण्णगणादो चूरेह हत्थपत्थर चंडाल अण्णपाणे चंडालसंकरे सहं चंडालादिसु सोलस चंडालादिसुउणहि ३६ ur m ३८. १४ छक्कम्मदेसयरणे छट्ठ अणुव्वयघादे छह अणुव्वदघादे छट्ट लहुमास मासिय छत्तीसहारसए छण्णं पि सावयाण ५८ २२ ३४ जो अण्णसिं दव्वं | जो अपरिमिदपराधो ७१ जो अब्बभं सेवदि | जो एवंविहदोसो जोगे गहिदम्मि, जो णियमवंदणाण जो दसणपन्भट्टो जो पक्खमासचउमा जो मणुयदेवतिरिय जो रत्तीए चरियं जो रुक्खमूलजोगी जो सेवदि अब्बंभ जं उवहिसेजपडि जंतारूढो जोणिं जं सवणाणं वुत्तं जं सवणाणं भणियं १५ २९ ११ ४१ जण्हम्हि विउस्सग्गे जण्हूउवरिं चउचउ जदि आयरिओ छेदं जदि एगनिसं वसहिय जदि पुण चंडालादी जदि पुण पक्खादि जदि पुणमुहम्मि पस्सदि जदि पुण विराहिऊणं जदिसंथारसमीवे जलपुप्फक्खयसेसा जलवदमंतेहि हवे जह सवणाणं भणियं जाणुपमाणम्मि जले जाणंतस्स विसोही ११ monal ६१ Aar ठाणासणादिजोगे | ठिदिभोयणेगभत्ते ड. ९४ । डोलियगमणम्मि पुणो १७

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